गालव ऋषि ( Galav Rishi ) की तपस्या स्थली गलता तीर्थ (Galta Ji ) के डूंगरों में आज भी जड़ी-बूटियों की भरमार है। यहां की जड़ी बूटियों का दवाइयों में इस्तेमाल हो रहा है। अब पहले जितनी वन औषधियां नहीं मिलती लेकिन ऊंची चट्टान पर काले नीले रंग का पदार्थ रिसता है, जिसे लोग शिलाजीत ( Shilajit ) होना मानते हैं। आयुर्वेद की अनेक दवाओं में शिलाजीत का उपयोग होता है। गर्मियों में द्रव्य के रूप में शिलाओं का गंगा को गोमुख में प्रवाह करने वाले संत कृष्णदास पयोहारी की गुफा के ऊपर एक टेड़ी चट्टान के बीच की शिलाओं से यह पदार्थ निकलता है। आम लोग भी यहां आते हैं और बूटियां ढूंढते हैं। पर्यटकों में मंकीज वैली ( Monkey Valley ) के नाम से प्रसिद्ध गलता के साथ पहले आमागढ़ में भी यह पदार्थ दिखाई देता था।
आयुर्वेद ग्रंथों के मुताबिक तेज गर्मी में पहाड़ी की शिलाओं के बीच से निकलने वाले गोंद रूपी तरल सार को शिलाजीत बताया है। वन औषधि के वैद्य शंभू शर्मा के मुताबिक पत्थर से निकलने वाले द्रव्य शिलाजीत का शोधन करने के बाद ही काम में लिया जा सकता है। इससे दवाइयां बनती हैं।
गलता में पहले वन औषधियां भी बहुत थी। कनक चम्पा, चिरायता, सालर, वज्रदंती, पत्थर चट्टी, चीरमी, नीम गिलोय, गंधारी, कालीजीरी, काक जंघा, बापची, कौंच, राजपीपल, शतावरी जैसी वन औषधियों से आयुर्वेद चिकित्सक दवाइयां बनाते थे। हरिद्वार, शिमला, नेपाल, हिमाचल के पर्वतों में शिलाजीत पाया जाता है। दूदू के पास बिचून में दादू पालकिया पहाड़ की चट्टानों से भी शिलाजीत रिसता बताया।
यहां गालव नाम के ऋषि ने कई वर्षों तक तप किया था। यहां के मुख्य मंदिर को गलता जी का मंदिर कहा जाता है। इसके अलावा यहां बालाजी और सूर्य भगवान का मंदिर भी है। गलता में बंदरों की भरमार है। यहां की घाटियों, पहाड़ों और मंदिरों में हर तरफ बंदर ही बंदर दिखाई देते हैं इसलिए इसे मंकी वैली ( Monkey Valley ) भी कहा जाता है। गलता मंदिर परिसर में प्राकृतिक पानी के 7 कुण्ड हैं, जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं।