पिता-पुत्र की जोड़ी ने सजाया सुरों का कारवां
जयपुर। मेजर हेड सर्जरी के बाद पहली बार मंच पर नजर आए ग्रैमी अवॉर्ड विनर फनकार पद्मभूषण पंडित वश्वमोहन भट्ट ने संगीत प्रेमियों से कहा कि मेरे अंदर संगीत की रूह ने नया जीवन दिया है ताकि मैं इस रुहानी ताकत से मोहनवीणा साज पर सुर साधता रहूं और दुनिया को सुरीले संगीत से रोशन करता रहूं। उन्होंने यह बात शनिवार को संगीत अमृत महोत्सव के तहत प्राचीन कला केन्द्र चंडीगड़ की ओर से संजोए प्रतिष्ठित म्यूजिकल कॉन्सर्ट में परफॉर्म करने के दौरान कही। कार्यक्रम में उनके पुत्र शिष्य सात्विक वीणा वादक पंडित सलिल भट्ट ने भी स्टेज शेयर किया। पिता-पुत्र की इस सदाबहार जोड़ी ने सुरों का कारवां सजाकर मौजूद दानिशंद श्रोताओं के दिलों छू लिया। इस कार्यक्रम का खास आकर्षण पंडित विश्वमोहन भट्ट उनके पुत्र सलिल भट्ट के साथ संगत कलाकारों में तबले पर पंडित हिमांशु महंत और खड़ताल पर कुटले खान रहा। सभी कलाकारों ने राजस्थानी फोक रचना राग किरवानी धुन में पिरोई बालम जी म्हारा…की दिलकश प्रस्तुति से माहौल में संस्कृति की सोंधी महक घोल दी। इन कलाकारों ने लोक व विश्व संगीत रचनाओं से सभागार को गुंजा दिया। इससे पहले प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ के अध्यक्ष सजल कोसर, गुरु मां शोभा कोसर ने कलाकारों का सम्मान किया।
तकरीबन दो साल बाद स्टेज पर दिखाई दिए मकबूल फनकार पंडित विश्वमोहन भट्ट के वजाहत भरे चेहरे पर जबरदस्त फॉर्म और जोश दिखाई दिया। उन्होंने कार्यक्रम के शुरुआत में स्वरचित राग भूपाली में पिरोई गणेश वंदना की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। उन्होंने राग श्याम कल्याण के सुरों से इस राग का शृंगार किया। आलाप, जोड़ और झाला के लयबद्ध, कण.स्वरों और मींड़ के बेहतरीन संयोजन बाद उन्होंने बंदिशों की नजाकत भरी प्रस्तुति दी। उन्होंने ए मीटिंग बाय द रिवर, जोग ब्लूज, वंदे मातरम, राष्ट्रगान आदि रचनाओं की उम्दा प्रस्तुतियों से अपना दमदार कमबैक किया