कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश से संबंधित कानून में वर्ष 2017 में संशोधन कर 90 दिन की अवधि को बढ़ाकर 180 दिन कर दिया गया। ऐसे में रोडवेज वर्ष 1965 के प्रावधानों का हवाला लेकर सिर्फ 90 दिन का अवकाश नहीं दे सकता। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवता राम प्रताप सैनी ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता रोडवेज में कंडटर है। उसने 180 दिन के मातृत्व अवकाश लेने के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे सिर्फ 90 दिन का अवकाश ही स्वीकृत किया गया।
याचिका में शेष 90 दिन का अवकाश और दिलाने का आग्रह किया गया।
राजस्थान रोडवेज की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वर्ष 1965 के कानूनी प्रावधान के अंतर्गत 90 दिन का मातृत्व अवकाश ही दिया जा सकता है। ऐसे में याचिका को खारिज किया जाए। कोर्ट ने दोनों पक्ष सुनने के बाद रोडवेज के तर्क खारिज करते हुए याचिका को मंजूर कर लिया।
कार्यस्थल के आधार पर भेदभाव संभव नहीं
कोर्ट ने विभिन्न प्रावधानों का हवाला देकर कहा कि मातृत्व लाभ केवल वैधानिक अधिकारों या नियोता व कर्मचारी के बीच समझौते से सृजित नहीं होते, बल्कि यह एक महिला की पहचान और उसकी गरिमा से जुड़ा मौलिक पहलू है। किसी महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश देने में केवल इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता कि वह रोडवेज में कार्यरत है। कोर्ट ने रोडवेज के मामले में कानूनी प्रावधानों में संशोधन करने को भी कहा।