सवाल- जनता के हक में कटौती पर जनप्रतिनिधि मौन क्यों?
विद्युत मंत्रालय की एसओपी (स्टैंडर्ड ऑफ परफॉर्मेंस) में न्यूनतम 500 रुपए प्रतिदिन हर्जाने का प्रावधान किया गया, लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार ने जनता के हक पर कैंची चला दी। सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि अपने वेतन-भत्तों को एक मत से बढ़ाने का फैसला कराने वाले जनप्रतिनिधि जनता के हितों में कटौती पर मौन क्यों हैं।इस तरह केन्द्र की एसओपी दरकिनार
नो करंट शिकायत : बडे शहर में दो घंटे, छोटे शहरों में छह घंटे और ग्रामीण इलाकों में आठ घंटे में शिकायत का निवारणओवर हेड लाइन टूटना : बडे शहर में 4 घंटे, छोटे शहरों में 6 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 10 घंटे में समाधान
अंडरलाइन केबल टूटना : बडे शहर में 12 घंटे, छोटे शहरों में 12 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 24 घंटे में निवारण
डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर का फेल होना : बडे शहर में 8 घंटे, छोटे शहरों में 8 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 24 घंटे में किया जाए शिकायत का निवारण
हर्जाना – इन चारों मामलों में सेवादोष होने पर एलटी उपभोक्ताओं को 75 रुपए और एचटी उपभोक्ताओं को 150 के हर्जाने का प्रावधान है।
शिड्यूल शटडाउन : 24 घंटे का नहीं दिया गया नोटिस या फिर 7 घंटे से अधिक अवधि तक चलाया शटडाउन तो सेवादोष
हर्जाना – फीडर से जुड़े उपभोक्ताओं को 75 रुपए हर्जाना
(यह हर्जाना राशि डिस्कॉम्स की है,जबकि केन्द्र सरकार की एसओपी में पांच सौ रुपए प्रतिदिन तय किए गए थे। इनके अलावा कई अन्य सेवाएं भी हैं)