कोस मीनार अकबर के आमेर आगमन की गवाह
रणथम्भौर दुर्ग विजय अभियान के अलावा अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने के लिए निकला अकबर रास्ते में आमेर में रुका था। इतिहासकार राघवेन्द्र सिंह मनोहर के मुताबिक कनक वृंदावन के पास व हाडीपुरा आमेर में बनी कोस मीनार अकबर के आमेर आगमन की गवाह है। सन् 1569 हिजरी सन् 977 में अकबर के आमेर आने पर आमेर नरेश भारमल ने नमाज अदा करने के लिहाज से यहां Akbari Masjid बनवाई। आमेर में ठहरे बादशाह ने मस्जिद में नमाज अदा की।
रणथम्भौर दुर्ग विजय अभियान के अलावा अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने के लिए निकला अकबर रास्ते में आमेर में रुका था। इतिहासकार राघवेन्द्र सिंह मनोहर के मुताबिक कनक वृंदावन के पास व हाडीपुरा आमेर में बनी कोस मीनार अकबर के आमेर आगमन की गवाह है। सन् 1569 हिजरी सन् 977 में अकबर के आमेर आने पर आमेर नरेश भारमल ने नमाज अदा करने के लिहाज से यहां Akbari Masjid बनवाई। आमेर में ठहरे बादशाह ने मस्जिद में नमाज अदा की।
औरंगजेब शासन में हुआ मस्जिद का विस्तार
औरंगजेब शासन के अंतिम दिनों में अकबरी मस्जिद का विस्तार हुआ। वंश भास्कर में सूर्यमल्ल मीसण ने लिखा कि अकबर के आमेर आने की खुशी में भारमल ने आमेर रियासत में दीपकों की रोशनी से सजावट करवाई।
औरंगजेब शासन के अंतिम दिनों में अकबरी मस्जिद का विस्तार हुआ। वंश भास्कर में सूर्यमल्ल मीसण ने लिखा कि अकबर के आमेर आने की खुशी में भारमल ने आमेर रियासत में दीपकों की रोशनी से सजावट करवाई।
हाड़ी रानी ने विरोध में खा लिया था विषाक्त
वंश भास्कर में लिखा है कि अकबर के आमेर आने पर जहां जश्र का माहौल था, वहीं जनाना महलों की हाड़ी रानी ने विरोध में विषाक्त पदार्थ खाकर मरने का प्रयास किया, लेकिन समय पर राज वैद्य ने उपचार कर उन्हें स्वस्थ कर दिया। हाड़ी रानी ने मरने के लिए कटार भी छुपा रखी थी। फिर वह महलों को छोड़ आमेर स्थित हाड़ीपुरा की एक हवेली में रहने लगी। इसी हवेली के कारण आमेर का हाड़ीपुरा मोहल्ला आज भी प्रसिद्ध है।
वंश भास्कर में लिखा है कि अकबर के आमेर आने पर जहां जश्र का माहौल था, वहीं जनाना महलों की हाड़ी रानी ने विरोध में विषाक्त पदार्थ खाकर मरने का प्रयास किया, लेकिन समय पर राज वैद्य ने उपचार कर उन्हें स्वस्थ कर दिया। हाड़ी रानी ने मरने के लिए कटार भी छुपा रखी थी। फिर वह महलों को छोड़ आमेर स्थित हाड़ीपुरा की एक हवेली में रहने लगी। इसी हवेली के कारण आमेर का हाड़ीपुरा मोहल्ला आज भी प्रसिद्ध है।