जयपुर

आधे से अधिक कृत्रिम उपग्रह नहीं देते क्लाइमेट डाटा तक पहुंच!

जलवायु परिवर्तन, मौसम, प्राकृतिक आपदाएं, कृषि विकास आदि में बेहतर नतीजों के लिए जरूरी डाटा तक खुली पहुंच

जयपुरApr 26, 2018 / 03:43 pm

Amit Purohit

जलवायु परिवर्तन को समझने और अपेक्षित कार्रवाई करने के लिए वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को उपग्रह डाटा की आवश्यकता होती है। फिर भी आधे से अधिक अवर्गीकृत पृथ्वी-निरीक्षण उपग्रहों के डाटा को खुले तौर पर साझा किए जाने की बजाय किसी न किसी रूप में प्रतिबंधित किया गया है। जब सरकारें उपग्रह से मिलने वाले डाटा को प्रतिबंधित करती हैं कि कौन डाटा तक पहुंच सकता है या इसका उपयोग कर सकता है तो कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक विज्ञान की प्रगति धीमी हो जाती है। एक ऐसे समय में जब अमरीका जलवायु परिवर्तन को लेकर फंडिंग को और सीमित कर रहा है, यह पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है कि शोधकर्ता और अन्य लोगों को मौसम उपग्रहों से मिलने वाले डेटा तक अधिकाधिक पहुंच मिले।
आखिर क्यों कुछ देश मौसम उपग्रहों से मिलने वाले डाटा तक खुली पहुंच प्रदान करते हैं, जबकि कुछ इस पर प्रतिबंध रखते हैं? जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विदेशी मामलों की एक सहायक प्रोफेसर मैरील बोरोविट्ज ने अपने शोध में कुछ केस स्टडी के जरिए बताया है कि कैसे देशों की आर्थिक चिंताएं और संस्थाओं की प्राथमिकताएं उपग्रहों से मिलने वाले डाटा तक पहुंच को प्रभावित करती है और कैसे इस डाटा तक पहुंच जरूरी हो जाती है।
इनसे मिला डेटा महत्वपूर्ण
मौसम उपग्रह, महासागरों, आर्कटिक क्षेत्रों और आबादी की दृष्टि से दुर्लभ क्षेत्रों पर व्यापक डाटा एकत्र कर सकते हैं, जिनकी निगरानी करना मनुष्यों के लिए मुश्किल है। वे अंतरिक्ष और समय के लिहाज से लगातार डाटा एकत्र कर सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन अनुसंधान में उच्च स्तर की सटीकता में मदद करता है। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों में भूमि पर बर्फ के द्रव्यमान को मापने के लिए यू.एस.-जर्मन ग्रेस (जीआरएसीई) उपग्रह मिशन से डाटा का उपयोग करते हैं। 15 वर्षों से नियमित आधार पर डाटा एकत्र करके, जीआरएसीई ने दर्शाया कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड दोनों में बर्फ शीट 2002 से द्रव्यमान खो रही है। 2009 से बर्फ की मात्रा में बहुत तेजी से कमी आ रही है।
बहुत महंगी होती है कीमत
उपग्रह मूल्यवान डाटा एकत्र करते हैं, लेकिन यह बहुत महंगा हैं, आम तौर पर 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर लगभग एक बिलियन डॉलर प्रति मिशन तक। इन्हें आम तौर पर तीन से पांच साल तक संचालित करने के लिए डिजाइन किया जाता है लेकिन अक्सर यह तय समय-सीमा से ज्यादा समय तक काम करते रहते हैं। कई राष्ट्र कुछ लागतों को वसूल करने के लिए डाटा बेचने या इसके व्यावसायीकरण का प्रयास करते हैं। यहां तक कि अमरीका की समुद्र व वायुमंडलीय प्रशासन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जो लगभग अपने सभी सैटेलाइट डेटा को खुले तौर पर उपलब्ध कराती हैं – अपने पहले चरण वाले कार्यक्रमों में इस डेटा को बेचने का प्रयास करती थीं। जैसे तत्कालीन समय में लैंडसेट से मिलने वाला डाटा।

एंजेसियों की प्राथमिकताएं भी बाधक
अन्य मामलों में, एजेंसी की प्राथमिकताएं किसी भी डेटा तक पहुंच को रोकती हैं। 2016 तक, पृथ्वी का अवलोकन करने वाले उपग्रहों के विकास या संचालन में 35 से अधिक राष्ट्र शामिल हैं। कई मामलों में, मिस्र और इंडोनेशिया जैसे छोटे या उभरते अंतरिक्ष कार्यक्रमों वाले देशों ने अपने इंजीनियरों को अनुभव देने के लिए अपेक्षाकृत सरल उपग्रहों का निर्माण करना चुना है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य डेटा का वितरण या उपयोग करने की बजाय क्षमता निर्माण व नई तकनीक का प्रदर्शन करना है, इसलिए डाटा सिस्टम को महत्त्वपूर्ण वित्त पोषण नहीं मिलता है। एजेंसियां डेटा पोर्टल और अन्य सिस्टम विकसित करने का जोखिम नहीं उठा सकतीं, जो कि व्यापक डेटा पहुंच को सुविधाजनक बना सकता है, इसके अलावा उन्हें यह भी लगता है कि इन प्रयोगात्मक उपग्रहों के डाटा की मांग बाजार में बहुत कम है। इस धारणा को बदलने की जरूरत है, साथ ही उन्हें आर्थिक संसाधन भी मुहैया करवाए जाएं।
डाटा तक पहुंच को मिले बढ़ावा
उन देशों के लिए, जो मानते हैं कि उनके डाटा की मांग कम है, या डेटा वितरण प्रणालियों में निवेश करने के लिए संसाधनों की कमी है, उन्हें आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाए जाने की जरूरत है। शोधकर्ता और अन्य उपयोगकर्ता समूह इस डाटा के संभावित उपयोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाएं और एजेंसियों से लेकर सरकारों तक को बताएं कि यह डाटा उनके लिए कैसे उपयोगी है और उन्हें इसकी कितनी जरूरत है। ग्रुप ऑन अर्थ ऑब्जर्वेशंस जैसे अंतर सरकारी संगठन, निर्णय निर्माताओं के साथ अनुसंधान और उपयोगकर्ता समुदायों को जोड़कर इन प्रयासों में मदद कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन अपने डेटा साझा करने के प्रयासों की वैश्विक मान्यता के साथ साझाकरण के प्रयासों को प्रोत्साहित भी कर सकते हैं। डाटा तक सबकी पहुंच को बढ़ाने के लिए मौजूदा पोर्टलों में डेटा पोर्टल सेट करने या विदेशी डेटा की मेजबानी करने में मदद जैसे कार्यक्रमों के जरिए आवश्यक संसाधन निवेश को और कम किया जा सकता है।
38 फीसदी ही देते हैं डाटा तक खुली पहुंच
1957 और 2016 के बीच शुरू किए गए 458 पृथ्वी-निरीक्षण उपग्रहों में से केवल 38 फीसदी ही अपने डाटा तक जनता को खुली पहुंच प्रदान करते हैं। ‘ओपन स्पेस ‘ : मैरील बोरोविट्ज (एमआईटी प्रेस 2017) द्वारा ‘पर्यावरण उपग्रह डेटा के लिए ओपन एक्सेस के लिए वैश्विक प्रयास ‘ चार्ट के अनुसार 27 फीसदी डाटा अज्ञात या अनुपलब्ध है। 25 फीसदी डाटा पर प्रतिबंध है, जबकि 10 फीसदी डाटा व्यावसायिक है।

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