बड़े भी बने बच्चे, देखा पपेट शो
सुबह रंगायन में दिल्ली मो. शमीम के निर्देशन में पपेट शो हुआ। अमूमन बच्चे ही कठपुतलियों की अठखेलियों से रोमांचित होते हैं लेकिन शमीम के शो ने बड़ों को भी बखूबी प्रभावित किया। शमीम और उमेश की अंगुलियों पर नाचती कठपुतलियों ने बड़ी ही संजीदगी से रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी अलग-अलग कहानियों को हास्यपूर्ण तरीके से मंच पर साकार किया। सांप, जोकर, ड्रमर और डांसर की कठपुतलियां ही इसकी पात्र रही और उनके मूवमेंट इसके संवाद। बैकग्राउंड म्यूजिक बदलने के साथ एक कहानी से दूसरी कहानी में दर्शक पहुंचते हैं। हर बार नया रोमांच और नए जज्बात ये कठपुतलियां ज़ाहिर करती हैं। शमीम ने बताया कि सन् 2009 में उन्होंने इस शो का निर्माण किया था। देशभर में 100 से अधिक बार इस नाटक का मंचन किया जा चुका है। शमीम को संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है। केंद्र की अति. महानिदेशक प्रियंका जोधावत भी इस दौरान मौजूद रही। उन्होंने कहा कि यह शो बेहद खास रहा जिसमें बच्चों और परिजनों ने साथ पपेट शो देशा। कहानी कहने का यह तरीका बेहद अलग और काबिल-ए-तारीफ है।
अहमियत रिश्तों की ‘हमसफ़र’
रंगमंच प्रेमियों को शाम का बेसब्री से इंतजार था, सभी में उत्साह था वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सलीम आरिफ़ के निर्देशन में होने वाले नाटक ‘हमसफ़र’ को देखने का। नाटक की परिकल्पना भी सलीम आरिफ़ ने की है। इसके लेखक जावेद सिद्दकी है। बड़ी संख्या में दर्शक नाटक को देखने पहुंचे। आलम यह रहा कि रंगायन के अतिरिक्त कृष्णायन सभागार में भी स्क्रीन पर दर्शकों ने नाटक देखा। हमसफ़र रिश्तों की अहमियत को दर्शाने वाला नाटक है। अभिनेता हर्ष छाया और अभिनेत्री लुबना सलीम ने नाटक में अभिनय किया। दोनों के अभिनय ने दर्शकों को एकटक नाटक देखने को मजबूर कर दिया।
‘रिश्ते अगर होते लिबास और बदल लेते कमीज़ों की तरह‘
वैवाहिक संबंध के विच्छेद के दंश के साथ नाटक की शुरुआत होती है। शादी के पंद्रह साल बाद सोनल और समीर तलाक का फैसला लेते हैं। दोनों का यह मानना है कि इस मोड़ पर अलग होकर वे जीवन की नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं। आपसी सहमति से अलग होने के बावजूद कई अनसुलझे सवालों को साथ लेकर वे आगे बढ़ते हैं। समीर निकलता है एकांत की खोज में जबकि भावुक सोनल अलगाव और निराशा के जाल में उलझ जाती हैं। रिश्तों की डोर उन्हें एक-दूसरे की ओर खींचती रहती है। अनायास ही सात बार वे एक दूसरे से टकराते हैं। इन मुलाकातों के जरिए ही दर्शकों का साक्षात्कार होता है पारिवारिक जीवन और रिश्तों की मिठास से। कभी नाटक दर्शकों को भावुक करता है तो कभी चुटीले संवाद माहौल में हंसी घोलते हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से निकले सलीम आरिफ़ अपने नाटकों में अनोखे प्रयोग के रूप में गुलजार की कविताओं का उपयोग करते रहे हैं। हमसफ़र में भी गुलजार की ही आवाज़ में उनकी कविताएं बैकग्राउंड में सुनाई दी। जो परिवार और रिश्तों की अहमियत, शहरी अलगाव के दंश को जाहिर करती है। नाटक में गूंजी पंक्ति ‘रिश्ते अगर होते लिबास और बदल लेते कमीज़ों की तरह’ ही नाटक का सार है। सलीम आरिफ़ ने कहा कि वर्तमान समय में रिश्तों को बड़ी आसानी से तोड़ा जा रहा है लेकिन उनकी अहमियतों को नकारा नहीं जा सकता है। ध्यान रहे कि रिश्तों से मुंह मोड़कर कहीं हम भावी पीढ़ी को बुजुर्गों से मिलने वाले प्यार से वंचित तो नहीं कर रहे हैं।
आगामी नाटक
10 अप्रैल को प्रात: 11:00 से दोपहर 12:00 बजे कृष्णायन सभागार में दीपक पारीक निर्देशित चिल्ड्रन प्ले ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’, दोपहर 12:00 से 1:00 बजे रंगायन सभागार में आयुषी निर्देशित नाटक ‘अकबर बीरबल’ और सायं 7:00 से रात्रि 9:00 बजे कृष्णायन में अनिल मारवाड़ी के निर्देशन में प्रायोगिक नाटक ‘भेळी बात’ का मंचन होगा।
आगामी संगीत प्रस्तुतियां
10 अप्रैल को सायं 7:00 बजे रंगायन सभागार में संतोष जोशी की मांड गायन प्रस्तुति और नरेंद्र कृष्ण की कथक फ्यूजन प्रस्तुति होगी। 10 अप्रैल को सायं 5:30 बजे शिल्पग्राम में टोनी व ग्रुप की बैंड प्रस्तुति होगी।