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जयपुर

डॉक्टरी छोड़ चुनाव लड़ा, वहां भी मन खट्टा हुआ तो छोड़ दी राजनीति : डॉ. सिंह

लोकसभा चुनाव में मिले थे 50 हजार वोट

जयपुरMay 01, 2019 / 11:08 pm

pushpendra shekhawat

Dr. Virendra Singh

डॉक्टरी छोड़ चुनाव लड़ा, वहां भी मन खट्टा हुआ तो छोड़ दी राजनीति : डॉ. सिंह

विकास जैन / जयपुर। लोकसभा चुनाव ( Loksabha Election ) 2014 में जयपुर शहर लोकसभा सीट ( jaipur constituency ) से चुनाव लडऩे वाले शख्स को अब सियासत से विरक्ति हो गई है। ये शख्स हैं राजस्थान के शीर्ष डॉक्टरों में शुमार किए जाने वाले डॉ. वीरेन्द्र सिंह ( Dr. Virendra Singh )। डॉ. सिंह ने एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक पद पर रहने के दौरान ही वीआरएस लेकर चुनाव लड़ा। तब उन्होंने प्रचंड मोदी लहर के बावजूद करीब 50 हजार मत लेकर सबको चौंकाया भी। अब डॉ. सिंह राजनीति से पूरी तरह दूर अपने मूल कर्म में ही लगे हुए हैं। उनका कहना है कि वे सिस्टम में सुधार लाना चाहते थे, लेकिन यहां तो कोई पाक-साफ नहीं है। पत्रिका ने की उनसे

सवाल: आपने भ्रष्टाचार से लडऩे और सिस्टम सुधारने का जो जज्बा दिखाया था, अब कहां है?

जवाब: मैं राजनीति में निष्क्रिय क्यों हुआ, इसे मैं एक उदाहरण देकर समझाऊंगा। एक गांव में भोलाराम बस का मालिक था और उसका ड्राइवर था रामू। धीरे-धीरे रामू भोलाराम पर इतना हावी हो गया कि लोग रामू को ही मालिक मानने लगे। रामू भोलाराम के परिजनों से भी किराया वसूलने लगा। भोलाराम तो जैसे गुम ही हो गया। यही कहानी है हमारे देश की। जनता है भोलाराम और मालिक बना हुआ है रामू। दरअसल, 40 तरह के टैक्स देने वाली जनता मालिक है और पगार लेने वाली सरकार नौकर। हमारे संविधान के अनुसार भी जनता शासक है और सरकार नौकर है। लेकिन दुर्भाग्य से जनता की निष्क्रियता से सरकार में बैठे रामू जैसे व्यक्ति मालिक बन गए हैं और भोलाराम जैसी जनता नौकर।
सवाल: आपने तो अलग हटकर पार्टी चुनी थी, फिर कहां परेशानी आई?
जवाब: आम आदमी पार्टी ने व्यवस्था को बदल कर भोलाराम को अपना हक़ मालिक बनाने का वादा किया था। इसी व्यवस्था परिवर्तन की देश की आवश्यकता के लिए मैं राजनीति में आया और चुनाव भी लड़ा। लेकिन समय के साथ आम आदमी पार्टी भी अन्य पार्टियों जैसी ही बन गई। इसी कारण मैं पार्टी में निष्क्रिय हो गया और अपने प्रोफेशन में ज़्यादा सक्रिय।
सवाल: ऐसा कहा जाता है कि कई डॉक्टर नौकरी छोडऩे के लिए चुनाव के नाम पर वीआरएस लेते हैं?

जवाब: कहा क्या जाता है, इस पर मैं नहीं जाऊंगा। कौन डॉक्टर किन परिस्थितियों में वीआरएस लेता है और क्यों लेता है, इस पर भी मैं नहीं जाऊंगा। लेकिन मेरे वीआरएस लेने का कारण सिर्फ और सिर्फ राजनीति था। मैं तो एसएमएस अधीक्षक पद पर था। तब वीआरएस लिया, चाहता तो कुछ समय और इस पद पर रहता। मैंने वीआरएस लेने के बाद पूरे जज्बे से चुनाव लड़ा भी और अच्छी संख्या में मत भी प्राप्त किए। जहां तक डॉक्टरा के राजनीति में होने का सवाल है तो सूची बहुत लंबी है, जिन्होंने वीआरएस लेकर चुनाव लड़ा और बड़े पदों पर हैं। इसलिए कहा तो किसी के लिए भी कुछ भी जा सकता है।
सवाल: आपको राजनीति से विरक्ति हुई, आज की राजनीति में कोई आदर्श हैं आपके?
जवाब: आदर्श होता तो मैं उन्हीें के पास चला जाता न, आज की राजनीति में मुझे कोई भी आदर्श नजर नहीं आता। बात व्यवस्था परिवर्तन की है। व्यवस्था वहीं की वहीं है…जो नए आ गए, उन्होंने क्या बदल दिया और जो पहले रह लिए, उन्होंने क्या बदल दिया। दरअसल, जनता को शासक बनाना होगा, तभी देश में व्यवस्था परिवर्तन होगा। पश्चिमी देश इसीलिए आगे बढ़ रहे हैं।
सवाल: अब आप क्या कर रहे हैं ?

जवाब: मुझे भगवान से उपहार में डॉक्टरी पेशा मिला है, इससे पवित्र पेशा क्या हो सकता है। राजनीति से विरक्ति के बाद मैंने अपना मूल काम करने में ही भलाई समझी। अब वो ही कर रहा हूं।

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