सवाल: आपने भ्रष्टाचार से लडऩे और सिस्टम सुधारने का जो जज्बा दिखाया था, अब कहां है? जवाब: मैं राजनीति में निष्क्रिय क्यों हुआ, इसे मैं एक उदाहरण देकर समझाऊंगा। एक गांव में भोलाराम बस का मालिक था और उसका ड्राइवर था रामू। धीरे-धीरे रामू भोलाराम पर इतना हावी हो गया कि लोग रामू को ही मालिक मानने लगे। रामू भोलाराम के परिजनों से भी किराया वसूलने लगा। भोलाराम तो जैसे गुम ही हो गया। यही कहानी है हमारे देश की। जनता है भोलाराम और मालिक बना हुआ है रामू। दरअसल, 40 तरह के टैक्स देने वाली जनता मालिक है और पगार लेने वाली सरकार नौकर। हमारे संविधान के अनुसार भी जनता शासक है और सरकार नौकर है। लेकिन दुर्भाग्य से जनता की निष्क्रियता से सरकार में बैठे रामू जैसे व्यक्ति मालिक बन गए हैं और भोलाराम जैसी जनता नौकर।
जवाब: आम आदमी पार्टी ने व्यवस्था को बदल कर भोलाराम को अपना हक़ मालिक बनाने का वादा किया था। इसी व्यवस्था परिवर्तन की देश की आवश्यकता के लिए मैं राजनीति में आया और चुनाव भी लड़ा। लेकिन समय के साथ आम आदमी पार्टी भी अन्य पार्टियों जैसी ही बन गई। इसी कारण मैं पार्टी में निष्क्रिय हो गया और अपने प्रोफेशन में ज़्यादा सक्रिय।
जवाब: आदर्श होता तो मैं उन्हीें के पास चला जाता न, आज की राजनीति में मुझे कोई भी आदर्श नजर नहीं आता। बात व्यवस्था परिवर्तन की है। व्यवस्था वहीं की वहीं है…जो नए आ गए, उन्होंने क्या बदल दिया और जो पहले रह लिए, उन्होंने क्या बदल दिया। दरअसल, जनता को शासक बनाना होगा, तभी देश में व्यवस्था परिवर्तन होगा। पश्चिमी देश इसीलिए आगे बढ़ रहे हैं।