दरअसल 59 साल पहले राजधानी जयपुर में रहने वाले एक बड़े कारोबारी जिनका नाम रामेश्वर प्रसाद शर्मा था, उनका देहांत कुछ समय पहले ही हुआ है। रामेश्वर लाल शर्मा लोहे के बड़े कारोबारी थे और उनकी कोई संतान नहीं थी। उनको किसी ने कहा कि वे मालपुरा, टोंक में स्थित भगवान डिग्गी कल्याण जी के यहां पदयात्रा करते हुए जाएं और पुत्र रत्न की मन्नत मांगे। रामेश्वर लाल शर्मा और उनके परिवार के चुनिंदा सदस्यों ने पैदल यात्रा की और डिग्गी पहुंचकर पूजा पाठ कर वापस लौट आए। कुछ दिनों बाद ही रामेश्वर लाल को पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। बेटे को लेकर वे सीधे कल्याण धणी के दरबार में कार से पहुंचे।
कल्याण जी के आर्शीवाद से पुत्र मिला तो उसका नाम श्री जी ही रख दिया गया। उसके बाद हर साल सावन के महीने में यह पदयात्रा निकाली लाने लगी। कुछ ही सालों में इस यात्रा का स्वरूप इतना बड़ा हो गया कि यह लक्खी यात्रा हो गई। कुछ साल पहले श्रीजी के पिता रामेश्वर लाल का देहांत हो गया। उसके बाद अब श्रीजी ये प्रथा निभा रहे हैं। अपने जन्म से लेकर अब तक वे हर साल डिग्गी कल्याण जी की यात्रा की शुरुआत करते हैं। जिस कार में पहली बार कल्याण धणी के गए थे वह कार हर बार सिर्फ लक्खी यात्रा के प्रचार के लिए ही काम में ली जाती है।