पुराने समय में वर्षाकाल में लोग परिवार सहित बैलगाडिय़ों से सवामणी और गोठ करने मंदिर में आते। करीब सात फीट ऊंची हनुमत मूर्ति है, जो राम-लक्ष्मण को पाताल लोक में ले जाने की छवि का दर्शन कराती है। एक हाथ में गदा, दूसरे से पर्वत उठाते हुए हनुमानजी हैं। अब करीब तीन बीघा में सिमटे मंदिर के चारों तरफ घनी आबादी बस गई है। आमेर नरेश जयसिंह प्रथम के समय यहां शिव व हनुमान मंदिर था। इसके आसपास के तालाब में ढेर सारा पानी और मिट्टी के ढेर होने से मंदिर को ढेर का बालाजी कहने लगे।
लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि शिव व हनुमानजी सुख-समृद्धि का ढेर करने वाले हैं। हनुमानजी के अलावा परिसर में भगवान शंकर के तीन प्राचीन मंदिर हैं। एक शंकर योगी रूप में दूसरे शृंगारिक रूप में परिवार साथ विराजे हैं। दक्षिण पूर्व में तीसरे शिवजी की सहस्त्राभिषेक पूजा अधिक होती है।