जयपुर

प्रदेश में हो रहे अपराधों पर DGP से पत्रिका की बातचीत, सरदारशहर मामले पर बोले- पीड़ित परिवार से क्षमा प्रार्थी

( RAJASTHAN CRIME ) पत्रिका: सरदारशहर जैसी घटनाएं क्यों होती हैं? कहां कमी है? तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं ? डीजीपी: उस परिवार के साथ जो हुआ, उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। इसके लिए हम दोषी हैं

जयपुरJul 18, 2019 / 02:20 am

abdul bari

प्रदेश में हो रहे अपराधों पर DGP से पत्रिका की बातचीत, सरदारशहर मामले पर बोले- पीड़ित परिवार से क्षमा प्रार्थी

जयपुर.
राजस्थान में पिछले कुछ महीनों से एक के बाद एक बड़े ही संगीन और गम्भीर अपराध हुए, ( RAJASTHAN CRIME ) जो राष्ट्रीय स्तर पर बहस का हिस्सा बने और प्रदेश को शर्मसार भी कर रहे हैं। अलवर में सरेराह समूहिक दुष्कर्म, जयपुर में छोटे से अंतराल में दो मासूम बच्चियों के साथ दहला देने वाली बर्बरता और अब सरदार शहर में पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आया। थाने में मौत और महिला के साथ दुष्कर्म ने सभी के जहन में दर्द और डर भर दिया। इधर, ओमेक्स सिटी में तीन अपहृतों के साथ बाहरी गैंग छिपी हुई थी और पुलिस को भनक तक नहीं थी और वीआइपी कहे जाने वाले जेएलएन मार्ग पर सिहरन पैदा कर देने वाला ताजा हादसा, ऐसे माहौल के बीच डीजी भूपेंद्र सिंह ( IPS Bhupendra Singh Yadav ) से पत्रिका ने बात की…
सवाल: आमजन में विश्वास, अपराधियों में भय। राजस्थान पुलिस के इस ध्येय वाक्य के विपरीत अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, पुलिस आमजन में विश्वास खो रही है?

जवाब: अपराध बढऩा एक प्रक्रिया है, इसके लिए बहुत से कारक हैं। सामाजिक-आर्थिक स्थितियां भी जिम्मेदार हैं। बढ़ते अपराधों पर सीधा नियंत्रण पुलिस का नहीं है। पुलिस का काम प्रिवेंटिव है तथा जो हो गया उस पर कार्रवाई करना है और जो रोका जा सकता है, उसे रोका जाए। जो अपराध हो जाए, उसके आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। ये सतत् प्रक्रिया है।
सवाल: आप कह रहे हैं कि सिर्फ पुलिस बढ़ते अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं है। क्या यह कह कर मुखिया किसी जिम्मेदारी से बच सकते हैं?

जवाब: मैं राजस्थान पुलिस का मुखिया ही नहीं, बल्कि इस समाज भी हिस्सा हूं। जो जिम्मेदारी किसी पिता, माता, अध्यापक व सामान्य नागरिक की है वह मेरी भी है। यह बचना नहीं है, यह अपने आप को दोहराना है। मैं इससे बच नहीं रहा हूं। पुलिस का हर कार्मिक समाज का हिस्सा है। पुलिस एक विभाग है तथा पुलिसिंग एक व्यापक कांसेप्ट है। पुलिसिंग का व्यापक अर्थ है समाज को अपराध से मुक्त रखना। कानून का नियमन करना, जिसमें समाज की कई संस्थाएं काम आती हैं।
सवाल: अलवर, धौलपुर, जयपुर और फिर चूरू, क्या कारण है फील्ड के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा पा रहे हैं?

जवाब: सड़क पर खड़ा सिपाही हो, उससे ऊपर का अधिकारी हो या चाहे एसपी हो। उसकी कमी, सफलता या विफलता मेरी भी कमी, सफलता या विफलता है। किसी घटना का जिक्र किए बिना मैं स्वीकार करता हूं जैसा होना चाहिए कुछ मामलों में उस तरह की कार्रवाई नहीं हुई। गलती करने वाले को तत्काल उसी के अनुरूप दंड मिलना चाहिए। गलती पर दंड नहीं मिले तो अच्छा काम करने वाले हतोत्साहित होते हैं। अभी मैं बता नहीं सकता, लेकिन आप देखेंगे कि जो गलती करेगा, वह दंड भी पाएगा।
सवाल: मुखिया होने के नाते आप संतुष्ट है कि वर्तमान में जो घटनाएं सामने आईं, उसमें पुलिस ने उचित कार्रवाई की है?

जवाब: कुछ ऐसे अपराध हुए, जो नहीं होने चाहिए। वे नहीं होते तो समाज के लिए अच्छा होता। हाल में जो भी बड़े मामले सामने आए, अधिकतर में पुलिस ने गम्भीर कार्रवाई कर अपराधियों को पकड़ा है। जिन पुलिसकर्मियों ने अच्छा काम किया, उनकी मैं सराहना करता हूं। हर केस के लिए मैं नहीं कह रहा। जिनमें कार्रवाई नहीं हुई या पुलिस ने गलत किया, मैं गलती स्वीकार करता हूं। जो कमियां हैं, उसे दुरुस्त किया जा रहा है। वह हमारी निगाह में हैं।
सवाल: सरदारशहर जैसी घटनाओं में भी ऐसी कमी रहती है, फिर भी जिम्मेदारों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया?

जवाब: इस समय सरदारशहर की घटना पर सीधी टिप्पणी करना मेरे लिए अनुचित होगा। अनुसंधान जारी है। कुछ भी बोलूंगा, उससे अनुसंधान प्रभावित होगा। मैं इतना जरूर बोलूंगा कि एक गरीब परिवार है, जिसने मृत्यु झेली है। एक महिला है, जिसके चोटें हैं। अपमान है। मेरा मन करता है कि मैं उस परिवार से मिलूं और कहूं कि जो आपके साथ हुआ उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। इसके लिए हम दोषी हैं। लेकिन इस घटना में ही नहीं अन्य घटनाओं में आप देखेंगे कि कुछ ऐसी स्थिति बन पड़ी है कि उच्च अधिकारी ऐसे मामलों में जाता है तो माहौल बदल जाता है। जब एक बड़ा अधिकारी जाता है, तो स्थानीय स्थितियां बदल जाती हैं, जो ऐसा करने से रोकती हैं। ऐसे मामलों में एक तरफ परिवार की वेदना है, तो दूसरी तरफ घटना के बाद गलत गतिविधियां प्रचलन में आ चुकी हैं। वहां बारगेन करने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं, डेड बॉडी लेकर लोग सड़क पर बैठ जाते हैं।

सवाल: पुलिस से यह अपेक्षित था, क्या पुलिस से कोई गलती नहीं हुई ?

जवाब: हां, कुछ न कुछ गलती पुलिस की ओर से जरूर हुई है। किस स्तर पर और किस हद तक है, यह जांच में पता चल जाएगा। अनुसंधान चल रहा है। आरोपों की जांच हो रही है, उस पर मैं टिप्पणी नहीं करूंगा। इतना जरूर कहूंगा कि जहां पुलिस की गलती हुई है, जो जिम्मेदार है, वह उसके लिए सजा पाएगा।
सवाल: राजधानी में ओमेक्स सिटी में अपराधी अपने ठिकाने बना लेते हैं और पुलिस बेखबर है?

जवाब: इसके दोनों पक्ष हैं। जयपुर शहर के विस्तार को देखते हुए पुलिस बहुत कम है। हमारे पास जो भी संसाधन हैं, उसमें हम बेहतर करने का प्रयास करते है। पुलिसकर्मियों को अवकाश नहीं दे पाते हैं। उनसे अधिक से अधिक समय काम कराते हैं, फिर भी हम हर जगह नहीं पहुंच पाते। दूसरा पक्ष देखिए कि पहली सूचना जैसे ही मिली, उसके बाद पुलिस के प्रयास देखिए। मैं सराहनीय काम के लिए बधाई देता हूं।
सवाल: चिंता यह है कि यहां पड़ोसी राज्यों की गैंग ठिकाने बना रही है?

जवाब: ये एक मिथ है कि पुलिस सर्वव्यापी है, सर्वदृष्टा है। जो कुछ भी होगा उसे मालूम होगा। पुलिस यथासंभव परिस्थितियों व वातावरण पर निगाह रख सकती है, बस। जहां बहुत ज्यादा पुलिस है, वहां भी अपराध पूरी तरह से एकदम बंद नहीं हुए हैं। जो हम कर सकते हैं, वह हर परिस्थिति में करने का अथक प्रयास करते हैं। हममें जितनी क्षमता व योग्यता है, उसके मुताबिक हम अधिकतम प्रयास करते हैं।
सवाल: लेकिन क्या शास्त्री नगर में छोटे से अंतराल में दो बच्चियों के साथ हुए दुराचार के मामलों में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल नहीं उठते?

जवाब: यह बात सही है कि पहली घटना को गम्भीरता से नहीं लिया गया। यदि पहली घटना को गम्भीरता से लिया जाता, तो तो शायद दूसरी घटना को रोका जा सकता था।
सवाल: प्रयास तो जेएलएन मार्ग पर भी हुए, कैमरे लगे, पुलिस तैनात है, लेकिन रफ्तार पर रोक नहीं लगी, कार चालक ने दो लोगों की जान ले ली?

जवाब: जयपुर में यातायात पुलिस की कमी अपनी जगह है। स्वीकृत नफरी का एक तिहाई जाप्ता है। बावजूद इसके उन्हें जो संसाधन हैं, उसमें ही बेहतर रिजल्ट देना है। मैंने तीन दिन पहले पुलिस की सम्पर्क सभा में भी सभी को संकल्प दिलाया है कि जो सम्भव हो, वह प्रयास कर शहर को सुरक्षित बनाएं। देखिए सीट बैल्ट, हैलमेट यह अपनी सुरक्षा के लिए पहने जाते हैं। महत्वपूर्ण तीन कारक हैं। रेड लाइट जम्पिंग, ओवर स्पिीडिंग व ड्रंक एंड ड्राइविंग। हमने सभी को कहा कि यातायात संचालन के समय इन तीन बिंदुओं पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, जिससे किसी दूसरे की जान खतरे में न पड़े। प्राथमिक तौर पर जरूरत ड्राइविंग बिहेवियर सुधारने की है।
सवाल: आप स्वीकारते हैं कि संसाधन सीमित हैं और हर काम पुलिस की सीमा में नहीं है। समाज के साथ की जरूरत बताते हैं तो पुलिस समाज से तालमेल क्यों नहीं बिठा पाती?

जवाब: कुछ हद तक यह बात सही है। पुलिस के काम की प्रकृति भी कुछ ऐसी है। उसे फाइन ट्यून करने में समय लग रहा है। कहीं लोग चाहते हैं पुलिस बाहुबली हो, मजबूत हो, अपराधियों के खिलाफ अग्रेसिव हो, योद्धा की तरह लड़े, वहीं कुछ जगह चाहते हैं कि वह मिलनसार हो, मीठा बोलने वाली हो। एक ही व्यक्ति में यह बदलाव हर समय में सम्भव नहीं हो पाता। इनमें संतुलन बैठाने के तरीके हमें तलाशने होंगे। बिना कम्यूनिटी के साथ और बिना पब्लिक पार्टिसिपेशन के न तो आपराधियों पर बेहतर नियंत्रण हो सकता है न ही कानून व्यवस्था मजबूत हो सकती है। जनता को साथ लेना जरूरी है। इसके लिए प्रयास सतत रूप से जारी हैं।
सवाल: आत्महत्या पूर्व अपनी आपबीती लिखने वाले आलोक शर्मा के मामले में अशोक नगर थाना पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं कर रही?

जवाब: उस मामले से कुछ परिचय मेरा भी है। उनका बेटा मुझसे मिला था। दो-तीन बार उससे बात हुई है। जांच अधिकारी पड़ताल कर रहा है। उसे ज्यादा डिक्टेट नहीं कर सकते। जांच में में कोई गलती दिखती है तो परिजन या कोई और हमे बता सकता है, लेकिन थोड़ा समय जांच के लिए देना ही पड़ेगा। हम उसमें बेहतर कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं।
सवाल: तेजी से बदलते तकनीकी युग में साइबर अपराध की रोकथाम में पुलिस का प्रभाव कहीं नहीं दिख रहा?

जवाब: इस मामले में अभी तक पुलिस की रफ्तार धीमी रही है। वहीं अपराधियों की गति अधिक तेज है। अब सरकार ने आर्थिक अपराधा शाखा खोलने का निर्णय किया है। अब पुलिस बाहरी विशेषज्ञों की भी मदद ले सकेगी।
सवाल: अक्सर पुलिस अधिकारी कहते हैं कि काम में राजनीतिक, जातिगत व अन्य दबाव आड़े आते हैं…?

जवाब: दबाव व्यक्ति सापेक्ष व समय सापेक्ष होते हैं। अब तक की नौकरी में मुझे ऐसा कोई दबाव महसूस नहीं हुआ, जिससे लगे कि मैं टूट रहा हूं। अधिकतर जो लोग आते हैं, रीजनेबल होते हैं। अत्यधिक दबाव की बात अक्सर गलत होती है। मुझे किसी ने ऐसी बात नहीं की।
 

सवाल: आप लोगों से क्या अपेक्षा करते हैं?

जवाब: मेरा सपना है कि सेवानिवृत्त होने के बाद मैं जींस व टी-शर्ट पहन कर शहर की सड़कों पर पैदल चलूं। जब मन करे साइकिल चलाऊं, जब बन कर बस में बैठ कर आराम से सफर करूं। सुरक्षित सड़क व सुरक्षित समाज तभी सम्भव है, जब हम सभी उसके लिए काम करें, अपनी जिम्मेदारी समझें। जब 90 प्रतिशत कानून की पालना करें और 10 प्रतिशत कानून तोडऩे वाले हों तो परेशानी नहीं है, लेकिन जब 90 प्रतिशत लोग कानून तोड़ेंगे तो सुरक्षित समाज सम्भव नहीं है।
सवाल: क्या राज्य सरकार द्वारा पुलिस विभाग को दिए गए बजट से आप संतुष्ट हैं?

जवाब: बजट से कोई भी पूर्णत: संतुष्ट नहीं होता है। पुलिस महकमा बहुत बड़ा है, अपेक्षाएं बहुत हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि क्या मिला है, महत्वपूर्ण यह है कि जो मिला है, उसका समय पर उपयोग हो। राज्य सरकार की भी सीमाएं होती हैं। मैं यह जरूर कह सकता हूं कि बजट अच्छा है।

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