स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारदजी इस व्रत का विधान बताया था। ब्रह्माजी के अनुसार इस दिन यथासंभव ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करें। इसके बाद भगवान का पूजन करें। प्रबोधिनी एकादशी पर अनेक प्रकार के फूलों, धूप आदि से अर्चना करनी चाहिए।
भगवान विष्णु को शंख के जल से अर्घ्य देना चाहिए। भगवान के पास भजन—कथा-कीर्तन करते हुए रात गुजारना करनी चाहिए। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार सुबह शुद्ध जल में स्नान के उपरांत भगवान के पूजन के बाद ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन करा यथाशक्ति दान—दक्षिणा देकर गुरु की पूजा कर नियम को छोड़ना चाहिए।
जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से उस वस्तु को पुनः ग्रहण करना चाहिए। प्रबोधिनी एकादशी के दिन विधानपूर्वक व्रत करनेवालों को अनंत सुख मिलते हैं और अंत में वे स्वर्ग में जाते हैं। इस एकादशी के माहात्म्य को सुनने व पढ़नेवालों को भी अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।