देव प्रबोधिनी एकादशी की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। उन्होंने नारद और ब्रह्माजी के बीच इससे संबंधित वार्तालाप सुनाया। इसके अनुसार नारदजी ने ब्रह्माजी से प्रबोधिनी एकादशी के व्रत का फल बताने का कहा। ब्रह्माजी ने कहा – कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत का फल सौ राजसूय यज्ञ तथा एक सहस्र अश्वमेध यज्ञ के फल के बराबर होता है।
ब्रह्माजी ने सविस्तार बताया— ‘हे नारद! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना बहुत दुष्कर है, प्रबोधिनी एकादशी व्रत से वह वस्तु भी सहज ही प्राप्त हो जाती है। इस दिन रात्रि जागरण करने से ब्रह्महत्या जैसे विकट पाप नष्ट होते हैं, सभी तीर्थों में जाने तथा गौ, स्वर्ण भूमि आदि के दान का फल मिलता है। इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। भगवान श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए सभी कर्मों को त्यागते हुए देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ आदि करनेवालों को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है. इस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने पर पूर्ण फल प्राप्त होता है।
इस दिन श्रद्धापूर्वक दान—पुण्य करने का भी महत्व है. एकादशी पर जरा सा भी पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है। प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने का मन में विचार करने पर ही सौ जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्माजी ने यह भी बताया कि जो मनुष्य प्रबोधिनी एकादशी का व्रत नहीं करता, उसके सभी पुण्य व्यर्थ हो जाते हैं।