अजमेर दरगाह में दो देग हैं। दरगाह में रखी बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने ख्वाजा की शान में भेंट की थी। वहीं छोटी देग बादशाह जहांगीर ने भेंट की। मुगल बादशाह अकबर ने अपनी मन्नत पूरी होने पर आगरा से अजमेर शरीफ तक पैदल आकर दरगाह पर मत्था टेका था। अकबर ने दरगाह में बुलंद दरवाजे के पास दक्षिण-पश्चिम में एक बड़ी देग बनवाई।
देग में श्रद्घालुओं के लिए भोजन बनाया जाता है जिसके लिए अग्रिम बुकिंग चलती है। उर्स के समय देगों की नीलामी में करोड़ों की बोली लगती है। इन देगों की बोली में कई खादिम शरीक होते हैं। इस नीलामी से मिलने वाली राशि से अंजुमन द्वारा लंगर चलाया जाता है साथ ही बच्चों की तालीम और सामाजिक कार्यों में भी पैसा खर्च किया जाता है।