बारिश की कमी के कारण राजस्थान मरुस्थलीकरण की चपेट में था। राष्ट्रीय मृदा सर्वे और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का कहना है कि 1996 तक 1.96 लाख वर्ग किमी. में फैले मरुस्थल का विस्तार 2011 तक 2.8 लाख वर्ग किमी. तक हो चुका था। अरावली पर्वत शृंखलाओं की प्राकृतिक संपदा को भी नुकसान पहुंचने से भूमि ज्यादा बंजर हुई है। यहाँ के लोगों ने अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए जंगलों को काटा है इसलिए मरुस्थल में बढो़तरी हुई थी। ऐसे में प्रदेश में तेजी से किए जा रहे नवाचार, जन भागीदारी, जागरूकता आने और नहरीकरण से मरुस्थल में कमी होना शुभ संकेत है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह वानिकी ह्रास तथा मरुस्थल का विस्तार हो रहा है, इससे आने वाले सालों में देश के भू-उपयोग का नक्शा बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। बारिश में हर साल कमी और अकाल की विभीषिका के चलते भविष्य में स्थितियाँ बिगड़ सकती है।