27 साल से फांसी नहीं हुई है किसी कैदी को राजस्थान में…..
राजस्थान में फांसी लगाने वाला या फंदा चढ़ाने वाला कोई जल्लाद नहीं है। हांलाकि ये पहले भी नहीं थे, पहले भी जल्लाद यूपी से बुलाए जाते थे। ये जल्लाद खुद ही विशेष रूप से बनाई गई रस्सी का फंदा लाते थे। लेकिन रिकॉर्ड्स की मानें तो आखिरी बार फांसी साल 2000 से पहले दी गई है, राजस्थान में। आखिरी बार साल 97 में आखिरी बार फांसी दी गई थी। उसके बाद से करीब 27 साल बीत गए हैं, किसी को भी फांसी नहीं हुई है।सिर्फ जयपुर सेंट्रल जेल जहां फांसी का सिस्टम, 35 से ज्यादा बंदियों को लटकाया गया
राजस्थान में सिर्फ जयपुर और जोधपुर सेंट्रल जेल ही ऐसी हैं जो आजादी के बाद सबसे ज्यादा पुरानी हैं। जोधपुर जेल को तो खुद अंग्रेजों ने बनवाया था इसी कारण तिहाड़ के बाद वह देश की दूसरी सबसे सुरक्षित जेल मानी जाती है। लेकिन उसके बाद भी फांसी की सजा का प्रावधान जयपुर सेंट्रल में रहा है। स्वतंत्र भारत के बाद जयपुर सेंट्रल जेल में करीब 35 से ज्यादा बंदियों को फांसी पर लटकाया जा चुका है। लेकिन अब 29 साल से किसी को भी फांसी नहीं दी गई है।आतंकियों से लेकर रेपिस्ट, दरिदों तक ये लोग हैं फांसी के हकदार….
राजस्थान में जयपुर सेंट्रल जेल में फांसी का सिस्टम होने के कारण पूरे राजस्थान में कहीं पर भी किसी को भी फांसी दी जाए उसे जयपुर सेंट्रल जेल में शिफ्ट किया जाता है। भीलवाड़ा में सजा पाने वाले दोनो आरोपियों को भी जयपुर भेजा गया है। जयपुर सेंट्रल में बम धमाकों के आरोपी आंतकियों समेत बच्चियों और युवतियों से रेप, शादी के लिए हत्या करने वाले आरोपियों तक करीब 15 आरोपी बंद हैं जिन्हें फांसी की सजा मिल चुकी है। समलेटी बम कांड, जयपुर बम धमाकों के कैंदियों के अलावा, रेप और हत्या के करीब 9 बंदी, शादी के लिए अपहरण और मर्डर के करीब चार कैदी बंद हैं। जेल में इस समय बूंदी, नागौर, भीलवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर, हनुमानगढ़, जयपुर समेत पंद्रह जिलों के बंदी बंद हैं।जयपुर से शिफ्ट करने की तैयारी थी फांसी सेल को, लेकिन टल गया मामला
दिल्ली की तिहाड़ की तर्ज पर ही जयपुर सेंट्रल जेल में फांसी के सिस्टम को डवलप करने की बात आई थी। यही कारण है कि जयपुर सेंट्रल जेल के दो अफसर पांच साल पहले तिहाड़ गए थे और वहां बंदोबस्त देखकर आए थे। उसके बाद जयपुर में सेंट्रल जेल की फांसी सेल को अन्यत्र शिफ्ट करने का प्रपोजल बना था। उसे दौसा में शाल्यावास जेल में ले जाना था। लेकिन यह प्रपोजल अटक गया। उद्देश्य था कि जेल में बंदियों के बीच किसी को फांसी की सजा देना उचित नहीं है।आखिर क्यों अटकती है सजा देने के बाद भी फांसी
सीनियर अधिवक्ता दीपक चौहान का कहना है कि फांसी की सजा पाने के बाद भी कई ऐसे पड़ाव है जिनके कारण अड़चन रहती है। कैदी के परिजन उपरी अदालत, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक में दया याचिकाएं लगाते हैं। सभी जगह से ना होने के बाद भी राष्ट्रपति तक दया याचिका दी जाती है। इन सभी प्रोसेस का अक्सर तय समय होता है। लेकिन उसके बाद भी प्रोसेस में देरी हो जाती है। कई बार दया याचिका खारिज होने के बाद फिर से दया याचिका लगा दी जाती है, उसमें फिर से समय जाया होता है। फांसी की सजा देने के लिए नियमों में सख्ती जरूरी है।राकेश मोहन उपाध्याय
अधीक्षक, जयपुर सेंट्रल जेल