जयपुर

दक्षिण कन्नड़ जिले के आठ क्षेत्रों में बाघों की गणना शुरू…. उच्च तकनीक का होगा इस्तेमाल… चार साल में एक बार होती है गणना

राष्ट्रीय प्राणी बाघों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम किए जा रहे हैं, इसके भाग के तौर पर चार वर्ष में एक बार चलने वाली बाघों की गणना का कार्य दक्षिण कन्नड़ जिले में शुरू हुआ है।

जयपुरFeb 16, 2022 / 06:15 pm

Satish Sharma

दक्षिण कन्नड़ जिले के आठ क्षेत्रों में बाघों की गणना शुरू…. उच्च तकनीक का होगा इस्तेमाल… चार साल में एक बार होती है गणना

जयपुर। राष्ट्रीय प्राणी बाघों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम किए जा रहे हैं, इसके भाग के तौर पर चार वर्ष में एक बार चलने वाली बाघों की गणना का कार्य दक्षिण कन्नड़ जिले में शुरू हुआ है। इसके लिए उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। पूर्व में कर्मचारी वन में जाकर देखी गई जानकारी को वन से लौटने के बाद पुस्तक में दर्ज कर रिपोर्ट देते थे, अब मौके पर ही जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड करने की तकनीक लागू की गई है। टाइगर अथॉरिटी ऑफ इंडिया के निर्देश तथा दिशा निर्देश के अनुसार वन विभाग तथा वन्यजीव विभाग के नेतृत्व में बाघों की गणना की जाती है। उप क्षेत्रीय वन अधिकारी, वन रक्षक, वन पर्यवेक्षक तथा स्थानीय व्यक्ति समेत पांच जनों का दल हर जगह समीक्षा कर गणना कर रहा है।
सुबह 6.30 से शाम तक कार्य कर रहे हैं
मेंगलूरु वन विभाग कार्य क्षेत्र के सुल्या, पुत्तूर तथा मेंगलूरु उप विभागों के तहत सुल्या, पंज, सुब्रह्मण्य, पुत्तूर, उप्पिनंगडी, बेल्तंगडी, बंट्वाल तथा मेंगलूरु क्षेत्रों में गणना की जा रही है। इसके लिए 106 ट्रांजिट लाइन (पारगमन रेखा) को चिन्हित किया गया है। 70 उपक्षेत्रीय वन अधिकारी, 87 वन रक्षक, 100 से अधिक वन पर्यवेक्षक सुबह 6.30 से शाम तक कार्य कर रहे हैं।
अभी तक बाघ नजर नहीं आया
वन अधिकारियों का कहना है कि मेंगलूरु रेंज के वन क्षेत्र में अब तक बाघ नजर नहीं आया है। पड़ोस के पुष्पगिरी अभयारण्य तथा कुदुरेमुख अभयारण्य इस मुद्दे पर थोड़ा संवेदनशील वाले भाग हैं। इनकी छोर पर मेंगलूरु रेंज आने के कारण शिबाजे, येत्तिनभुज, शिशिल, सुब्रह्मण्य आदि जगहों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। यहां बाघ गणना के नाम पर अधिकतर वन्य प्राणियों की गणना की जाती है। इसका मतलब यह शत प्रतिशत पक्का हिसाब नहीं है। इसके बाद भी वन में प्राणियों के रहने के हालात में हो रहे बदलाव का नजारा इस गणना से मिलता है।
आधुनिक गणना व्यवस्था
पुत्तूर के सहायक वन संरक्षण अधिकारी कार्यप्पा का कहना है कि वन विभाग की ओर से गणना के लिए पूर्व तौयारी के तौर पर क्षेत्रीय स्तर से क्षेत्रों को चिन्हित कर आईसीटी सेल को भेजा जाता है। सेल की ओर से इसका अध्ययन कर नक्शा बनाकर भेजते हैं। इसके अनुसार ही 106 ट्रांजिट लाइन को चिन्हित किया गया है। उस क्षेत्र में ही उन्हें घूमना चाहिए। उनकी पूरी तलाशी कार्य का लोकेशन के जरिए दर्ज होता है। गणना करने वालों को मोबाइल फोन के साथ वन में प्रवेश करना चाहिए।
प्रतिदिन पांच किमी क्षेत्र का सर्वेक्षण
पहले तीन दिन सीधे अवलोकन किया जाएगा। इसके अनुसार हर दल को प्रतिदिन पांच किलोमीटर के हिसाब से 15 किलोमीटर वन में घूमकर बाघ, तेंदुआ, हाथी, जंगली सूअर, सांभर, हिरण, जंगली भैंसा आदि वन्यजीवों को तलाशी करनी चाहिए। नजर आने वाले प्राणियों की जानकारी को मौके पर ही एप के जरिए अपलोड करना चाहिए।
फोटो सहित अपलोड
सीधा अवकोलन समाप्त होने के बाद प्राणियों के पंजों के निशान, पेड पर मौजूद खरोच के निशान, प्राणियों की लीद, प्राणियों की रुकने की जगह, बाघ, तेंदुआ आदि शिकारी प्राणियों आदि का पता लगाकर फोटो सहित अपलोड किया जाता है। घना जंगल, घाटी, घास का मैदान, शोला वन आदि जगहों पर गणना की जा रही है।
& जानकारी को टाइगर अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भेजा जाता है। वे अध्ययन करते हैं। अत्यधिक परामर्श करने के बाद ही अंतिम आंकड़ों को टाइगर अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से प्रकाशित किया जाता है। जानकारी उपलब्ध करना मात्र हमारा कार्य है।
-जयप्रकाश, क्षेत्रीय वन अधिकारी, आईसीटी सेल, मेंगलूरु रेंज

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