मुस्लिम समाज की छात्राओं का कहना है कि दुपट्टा हमारी संस्कृति है। जिसे हम किसी भी स्थिति में खुद से जुदा नहीं कर सकते। वहीं कुछ छात्राएं हिजाब की अनुमति देने की भी मांग कर रही हैं। राजधानी के सांगानेर में एक परीक्षा सेंटर पर स्टेट ओपन की 12वीं के परीक्षा के दौरान भी हिजाब और दुपट्टा साथ रखने की मांग पर कई छात्राएं परीक्षा चेकिंग टीम से टकराव की स्थिति में देखी गईं।
इनका कहना है…
समाजसेवी फरहीन खान का कहना है कि उन्होंने पत्र भेजकर सीएम अशोक गहलोत से मांग की है कि परीक्षा के दौरान छात्राओं को दुपट्टा साथ रखने की इजाजत मिले। चेकिंग के नाम पर उन्हें बेवजह परेशान न किया जाए। उन्होंने कहा कि देखने में आ रहा है कि इनदिनों कई छात्राएं दुपट्टा और हिजाब पहनने की जिद पर परीक्षा छोड़ रही हैं। जो काफी गलत है। हां, परीक्षा में चेकिंग के लिए हम सहमत हैं। महिला अधिकारी छात्राओं की ठीक से चेकिंग करे। अच्छा सिस्टम फॉलो करने में हमें कोई आपत्ति नहीं है।
पिछले एक माह में सामने आए कई मामले…
छात्राओं का आरोप, दुपट्टा उतारने का दबाव था, हमने परीक्षा छोड़ी
21 मई को डॉ. अम्बेडकर कॉलेज में मेरा पीटीईटी का एग्जाम था। चेकिंग वालों के कहने पर मैंने हिजाब, अंगुठियां आदि उतार दिए। लेकिन उन्होंने दुपट्टे के बिना ही एंट्री करने की शर्त रख दी। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने भी मेरा पक्ष लेकर एंट्री देने की गुहार लगाई, लेकिन मौके पर मौजूद चेकिंग वाले नहीं माने। आखिर मैंने परीक्षा ही नहीं दी।
मनतशा नसीम, टोंक
हम तीन लड़कियों का भविष्य खराब, सलवार सूट के साथ दुपट्टा क्यों नहीं
26 मार्च को आरयू में हमारी सेट की परीक्षा (उर्दू) थी। मुझ समेत अलवर की मुस्कान, दौसा की यास्मीन हम तीन लड़कियों को दुपट्टा उतारने के लिए कहा गया। हम हिजाब उतारने पर राजी हो गए। लेकिन दुपट्टा उतारने को तैयार नहीं हुए। ऐसे में हम तीनों को एंट्री नहीं मिली। सीकर के एक छात्र ने भी हमारी बेबसी देखते हुए दुखी होकर स्वेच्छा से परीक्षा नहीं दी। हम चार लोगों का भविष्य खराब हुआ है। हिजाब और दुपट्टे की अनुमति मिलनी चाहिए।
यास्मीन, प्रतापनगर
प्रतीकात्मक तस्वीर