क्या है कानून:
आमतौर पर वायदों और वसूली के बीच के फर्क को ही उपभोक्ताओं के साथ होने वाले अपराध के रूप में होने वाले अपराध के रूप में जाना जाता है। इसके बाद ही उपभोक्ताओं को अपने अधिकार संरक्षण को लेकर जागरुक होने की आवश्यकता महसूस होती है। खासतौर पर बाजार में ग्राहकों से होने वाली कालाबाजारी, मिलावटी सामान, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री के साथ अधिक कीमत वसूलने को लेकर विवाद शुरू होते हैं।
इसी को लेकर आज के दिन को उपभोक्ता संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। जगह जगह संगोष्ठी व जागरुकता अभियानों के माध्यम से आम आदमी को अपने अधिकारी के प्रति सावचेत किया जाता है। पहली बार अमेरिका में रल्प नाडेर द्वारा उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत की गई, जिसके फलस्वरूप 15 मार्च 1962 को अमेरिकी कांग्रेस में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश किए गए विधेयक पर अनुमोदन किया गया था।
राजस्थान के इस जिले के उपभोक्ता है सबसे जागरुक
पीडि़त खुद पा सकता है न्याय:
पूर्व में उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए बने न्यायालयों में लंबित होते प्रकरणों को देखते हुए अब इनको आयोग में तब्दील कर दिया गया है। उपभोक्ता 5 लाख रुपए तक के मामलों को लेकर सीधा आयोग में जा सकता है। इसमें किसी भी अधिवक्ता या अन्य व्यक्ति के माध्यम से जाना आवश्यक नहीं है। इसके लिए उपभोक्ता आयोग की ओर से अपना पॉर्टल बनाया हुआ है जिस पर पीडि़त व्यक्ति अपना रजिस्टर्ड मोबाइल और मेल आईडी डालकर अपना प्रकरण दर्ज करवा सकता है। साथ ही वह आयोग के सामने व्यक्तिगत भी अपनी समस्या रख सकता है।
नहीं देनी होती है कोई कोर्ट फीस:
पीडि़त को अपना केस दर्ज करवाने के लिए कोई फीस नहीं देनी होती है। ५ लाख रुपए तक के मामलों में सीधी आयोग के समक्ष अपना केस दर्ज करवाया जा सकता है। इसके साथ ही उसके मोबाइल व मेल आईडी पर उसको अपने केस की प्रोसेडिग़ भी मिल जाती है।
‘अधिकारों-कर्तव्यों के प्रति रहें सजग, दूसरों को करें जागरूक’
यह है अधिकार:
इस विधेयक में चार विशेष प्रावधान थे जिसमें सुरक्षा के अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार, उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार और सुवनाई का अधिकार शामिल था। बाद में इसमें 4 और अधिकारों को जोड़ा गया। अमेरिका के बाद भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत 1966 में मुंबई से हुई थी। 1974 में पुणे में ग्राहक पंचायत की स्थापना के बाद अनेक राज्यों में उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन किया गया असौर यह आंदोलन बढ़ता गया। 9 दिसंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित किया गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बार देशभर में लागू हुआ।
इसके बाद 24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। उपभोक्ता चाहे तो अपने अधिकारों से वस्तुओं की गुणवत्ता के बारे में जान सकता है तथा आईएसआई, एगमार्क आदि चिन्हों के बारे में भी जानने का अधिकार रखता। इसके साथ ही किसी भी वस्तु की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता, स्तर और मूल्य के बारे में जानकारी पाने का पूरा अधिकार उपभोक्ता को होता है और विक्रेता इंकार नहीं कर सकता है।
गुप्त लालच विवादों का मूल कारण:
उपभोक्ता मामलों से जुडे अधिवक्ता भागचंद भारद्वाज का कहना है कि, सबसे बड़ी समस्या लंबित मामलों की है। सुनवाई के लिए न्यायालयों की भाारी कमी है और काफी मामले पेडिंग रहते हैं। हालांकि ज्यादातर उपभोक्ताओं को सुनवाई के बाद राहत मिलती है लेकिल लंबी तारीख की वजह से पीडि़तों को परेशानी होती है। पीडि़़त अपनी समस्या लेकिन खुद न्याय पा सकता है लेकिन अधिवक्ताओं के माध्यम से आज के दौर में चल रहे बदलाव व नई तकनीक से फायदा हो जाता है। कोर्ट में खर्च होने वाले वक्त से राहत मिल जाती है। खासतौर पर आजकल बिल्डर्स व अन्य उत्पादकों के कुछ हिडन मामले ग्राहकों को परेशान करते है। जैसे बिल्डर्स ज्यादातर मामलों में लेट पेमेंट का विवाद खड़ा होता है। कीमत से ज्यादा वसूली, बीमा कंपनियों द्वारा भुगतान को लेकर कई तरह कानूनी पेचीदगियां सामने आ जाती हैं।