फॉर्मूले को लेकर कांग्रेस के सियासी गलियों में ही सवाल खड़े होने लगे हैं। इस फॉर्मूले के तहत ‘एक परिवार में एक ही व्यक्ति’ को टिकट दिया जाएगा लेकिन दूसरी स्थिति में उस परिवार के दूसरे व्यक्ति को टिकट तभी मिल सकता है जब वो कम से कम 5 साल तक पार्टी की सेवा कर रहा हो।
ऐसे में साफ है कि इस फॉर्मूले के लागू होने के बावजूद पार्टी के बड़े नेता अपने पुत्र पुत्रियों को टिकट दिलवाने में सफल हो जाएंगे चूंकि अधिकांश नेताओं के पुत्र-पुत्रियां कांग्रेस के अग्रिम संगठनों सहित अन्य पदों पर सक्रिय हैं। ऐसे में यह फॉर्मूला कुछ लोगों पर असर डाल सकता है लेकिन अधिकांश लोग इस फॉर्मूले से प्रभावित नहीं होंगे।
गांधी परिवार को रखा फॉमूले से बाहर
दिलचस्प बात यह है कि भले ही यह फॉमूला पूरी कांग्रेस पर लागू हो, लेकिन गांधी परिवार को इस फॉर्मूले से बाहर रखा गया है। ऐसे में इस फॉर्मूले के लागू होने को लेकर ही कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं।
पहले भी कई फर्मूले ठंडे बस्ते में
कांग्रेस गलियारों में चर्चा इस बात की भी है कि भले ही एक परिवार में एक टिकट देने के फॉर्मूले को सख्ती से लागू करने की बात कही जा रही हो लेकिन पार्टी में पहले भी कई ऐसे फॉर्मूले बने हैं जिन्हें सख्ती से लागू करने के दावे किए गए लेकिन पार्टी नेताओं की ओर से उन फॉर्मूलों की धज्जिया उड़ाई गई, जो ठंडे बस्ते में चले गए हैं और उन फॉर्मूले पर आज तक अमल नहीं हो पाया।
पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने का फॉर्मूला
पार्टी के भीतर चुनाव के ऐन वक्त पैराशूट से कांग्रेस पार्टी में एंट्री करके टिकट पाने वाले नेताओं को टिकट नहीं देने का फॉर्मूला भी लागू करने के दावे किए गए थे। विधानसभा चुनाव से पहले जयपुर में हुई राहुल गांधी की रैली के दौरान भी खुद राहुल गांधी ने पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने की बात कही थी लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान ही उनके फॉर्मूले की धज्जियां उड़ती में नजर आई थी।
एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत फार्मूला
वही पार्टी में सख्ती से लागू किए गए ‘एक व्यक्ति एक पद पर सिद्धांत’ बेएअसर नजर आया था। राजस्थान के अंदर ही कई विधायक और मंत्री ऐसे थे जो सत्ता और संगठन में दोहरी भूमिका मे थे। पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी दो पदों पर थे।
तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट अध्यक्ष के साथ-साथ डिप्टी सीएम के पद पर भी थे। इसके अलावा जयपुर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री खाचरियावास भी 2 पदों पर थे। इसके अलावा आधा दर्जन से ज्यादा विधायक भी ऐसे थे जो 2 पदों पर काम कर रहे थे। ऐसे में यह फॉर्मूला भी केंद्र से लेकर राजस्थान तक लागू नहीं हो पाया।
लगातार दो चुनाव हारे नेताओं को टिकट नहीं देने फॉर्मूला भी हुआ बेअसर
पार्टी की शीर्ष इकाई की ओर से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लगातार दो चुनाव हारने के बाद तीसरी बार टिकट नहीं देने के फॉर्मूले को भी सख्त उसे लागू करने की बात की गई थी लेकिन विधानसभा चुनाव में राजस्थान के अंदर ही कई प्रत्याशी ऐसे थे जिन्हें दो बार लगतार चुनाव हारने के बावजूद भी तीसरी बार टिकट दिया गया था और तीसरी बार भी चुनाव हार गए। ऐसे में यह फॉर्मूला भी लागू नहीं हो पाया था।
एक पद पर 5 साल वाले फॉर्मूले पर भी सवाल
दूसरी ओर कांग्रेस चिंतन शिविर में संगठन के अंदर एक पद पर 5 साल से ज्यादा समय तक नहीं रहने के फॉर्मूले पर भी चर्चा हुई है। दरअसल अगर कोई व्यक्ति एक पद पर 5 साल से ज्यादा रह जाता है तो वह दोबारा उस पद पर कंटिन्यू नहीं कर पाएगा। उसके लिए उसे 3 साल का गैप देना होगा और उसके बाद ही वह उस पद पर दोबारा संभाल सकता है। इस फार्मूले पर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
चर्चा है कि अगर कोई व्यक्ति महासचिव के पद पर 5 साल काम कर चुका है तो वह दोबारा महासचिव बनने के लिए 3 साल का इंतजार क्यों करेगा, वो पार्टी में उपाध्यक्ष या किसी अन्य पद पर काम कर सकता है। ऐसे में इस फॉर्मूले को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं हैं।