जयपुर

स्कूल से शिकायतें आएं तो बच्चे पर गुस्सा न करें, अलर्ट हो जाएं और माने एक्सपर्ट की राय

अगर आपके बच्चे के स्कूल से उसके बर्ताव या उसकी गतिविधियों को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। वो अति सक्रिय नजर आ रहा है तो उस पर गुस्सा नहीं करें बल्कि उसे समझाने की कोशिश करें।

जयपुरAug 04, 2023 / 03:42 pm

Nupur Sharma

जयपुर/ पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क। अगर आपके बच्चे के स्कूल से उसके बर्ताव या उसकी गतिविधियों को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। वो अति सक्रिय नजर आ रहा है तो उस पर गुस्सा नहीं करें बल्कि उसे समझाने की कोशिश करें। क्योंकि वह जान-बूझकर ऐसा नहीं कर रहा है।

यह अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी सिंड्रोम(एडीएचडी) के लक्षण हैं। राजधानी के मनोचिकित्सा केंद्र की ओपीडी में इस तरह के केस लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्र के बाल मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि हर माता पिता चाहता है कि उनका बच्चा एक्टिव हो लेकिन कई बच्चे ज्यादा एक्टिव यानि हाइपर एक्टिव हो जाते हैं। जिसका उन पर गलत असरपड़ता है।

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इन लक्षणों को नहीं करें अनदेखा
पढ़ाई में मन नहीं लगना।
एकाग्रता की कमी।
अतिसक्रियता।
क्लास में अपनी सीट से बार-बार उठना।
दूसरे बच्चों को परेशान करना, मारपीट करना।
तोड़-फोड़ करना।
चिड़चिड़ापन।
खेलने में अरुचि।
गुमसुम रहना, जिद्द करना।

घबराएं नहीं इलाज संभव
बच्चों में यह परेशानी नई नहीं हैं लेकिन लोगों में जागरूकता बढ़ी है इसलिए केस सामने आ रहे हैं। रोजाना 15 से 20 नए केस आ रहे हैं। इस सिन्ड्रोम के लक्षणों को अनदेखा नहीं करें। घबराएं नहीं, इसका उपचार संभव है ताकि उन्हें दूसरे विकारों से भी बचाया जा सके। माता-पिता को अवेयर रहने की जरूरत है। डॉ. ललित बत्रा, विभागाध्यक्ष, मनोचिकित्सा विभाग,मनोचिकित्सा केंद्र

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पहुंच रहे 15 से 20 मरीज
केंद्र में मंगलवार व शनिवार को बच्चों के लिए संचालित साइक्रेटिक ओपीडी में 40 से 50 मरीज आते हैं। जिसमें 15-20 बच्चे एडीएचडी से ग्रस्त हैं। इसमेे 4 से लेकर 14 वर्ष आयु तक के बच्चे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते इलाज नहीं किया जाए तो दूसरे मनोरोग की चपेट मेे भी आ सकते हैं। इस बीमारी का मुख्य कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है लेकिन इसकी वजह आनुवांशिकता व मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन मानते हैं।

इलाज-काउंसलिंग दोनों कारगर… सिन्ड्रोम से ग्रस्त मरीजों का उपचार इलाज दवा और काउंसलिंग दोनों तरह से दिया जाता है। यह छह माह से दो वर्ष तक चलता है। कुछ मरीजों का इलाज लंबे समय तक भी चलता है। दवा से अति सक्रियता कम होती है, जिससे मरीज सामान्य स्थिति में आ जाता है। इसके लिए व्यावहारिक चिकित्सा भी दी जाती है।

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