सीएनजी शोटेज से भी लोग परेशान
दूसरी तरफ, सीएनजी की शोटेज को भी लेकर लोग काफी परेशान है। आजकल जगह-जगह सीएनजी स्टेशन पर आपको गाड़ियों की लंबी कतारें सीएनजी भराने के लिए देखने को मिल रही है। लेकिन सीएनजी भी पेट्रोल-डीजल की तरह राजस्थान में ही पूरे देश में कमोबेश सबसे महंगा बिक रहा है। इसका कारण भी राजस्थान में सीएनजी पर अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक वैट है। हालांकि सीएनजी में चूंकि निजी कंपनियां ही अधिक हैं, इसलिए इनके दाम पूरे देश में एक जैसे नहीं हैं और जिस जिले में जिस कंपनी को ठेका मिल हुआ है, उसमें वही अपने लिए उचित प्रतिस्पर्धी दाम पर तय करती है और उस पर बेचने के लिए स्वतंत्र है। उदाहरण के लिए जयपुर में टौरेंट गैस का ठेका है और उदयपुर में अडानी गैस। लेकिन कंपनी कोई भी हो, राजस्थान में सीएनजी के दाम अपेक्षाकृत पूरे देश के सबसे अधिक ही हैं। इसकी प्रमुख वजह एक ही है राजस्थान में सीएनजी पर 16 प्रतिशत वैट लगता है, जबकि हरियाणा में 6 प्रतिशत और महाराष्ट्र में तो सीएनजी पर वैट को कम कर 3 प्रतिशत कर दिया गया है।
दूसरी तरफ, सीएनजी की शोटेज को भी लेकर लोग काफी परेशान है। आजकल जगह-जगह सीएनजी स्टेशन पर आपको गाड़ियों की लंबी कतारें सीएनजी भराने के लिए देखने को मिल रही है। लेकिन सीएनजी भी पेट्रोल-डीजल की तरह राजस्थान में ही पूरे देश में कमोबेश सबसे महंगा बिक रहा है। इसका कारण भी राजस्थान में सीएनजी पर अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक वैट है। हालांकि सीएनजी में चूंकि निजी कंपनियां ही अधिक हैं, इसलिए इनके दाम पूरे देश में एक जैसे नहीं हैं और जिस जिले में जिस कंपनी को ठेका मिल हुआ है, उसमें वही अपने लिए उचित प्रतिस्पर्धी दाम पर तय करती है और उस पर बेचने के लिए स्वतंत्र है। उदाहरण के लिए जयपुर में टौरेंट गैस का ठेका है और उदयपुर में अडानी गैस। लेकिन कंपनी कोई भी हो, राजस्थान में सीएनजी के दाम अपेक्षाकृत पूरे देश के सबसे अधिक ही हैं। इसकी प्रमुख वजह एक ही है राजस्थान में सीएनजी पर 16 प्रतिशत वैट लगता है, जबकि हरियाणा में 6 प्रतिशत और महाराष्ट्र में तो सीएनजी पर वैट को कम कर 3 प्रतिशत कर दिया गया है।
कंपनियों को जिला आधारित ठेके सीएनजी में फिलहाल कंपनियों को जिला आधारित ठेके दिए जाते हैं। कंपनी इसके दाम तय करने में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। कंपनियां इसके दाम तय करने में अपनी खरीद, लागत और आसपास के जिलों में सीएनजी के दाम देखकर प्रतिस्पर्धी आधार पर भाव तय करती हैं। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। सरकार सिर्फ उचित टैक्स वसूल सकती है।