संसद सदस्य शशि थरूर ने बजट सत्र के दौरान दुर्लभ बीमारियों के मरीजों की संख्या और आवंटित राशि के उपयोग की जानकारी लोकसभा में मांगी थी।
कई संस्थानों ने 5 से 35 प्रतिशत राशि ही खर्च की
दुर्लभ बीमारियों के उपचार केन्द्र के रूप में काम कर रहे देश के कई बड़े चिकित्सा संस्थानों ने इस राशि का बच्चों का उपचार करने के लिए उपयोग करने में भारी लापरवाही दिखाई। हैदराबाद के एक संस्थान ने तो मात्र 4.53 प्रतिशत राशि का उपयोग किया। नई दिल्ली और केरल के तीन संस्थानों ने मात्र 18 से 35 प्रतिशत राशि का उपयोग किया। राजस्थान में इन बीमारियों का इलाज एम्स जोधपुर में होता है। जयपुर के जेकेलोन अस्पताल में भी इन बीमारियों से पीडि़त बच्चे उपचार के लिए आ रहे हैं।
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उक्त राशि से कई बच्चों का इलाज किया जा सकता था, लेकिन इलाज के इंतजार में उन्होंने दम तोड़ दिया। सरकार को इस राशि के उपयोग करने के लिए सुव्यवस्थित तंत्र विकसित करना चाहिए। जिससे अधिक से अधिक जान बचाई जा सक।
मंजीत सिंह, संस्थापक, अध्यक्ष, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर सपोर्ट सोसाइटी (एलएसडीएसएस)