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जयपुर

पैसे का भूखा नहीं, सम्मान के दो शब्द तो कह दो

– मुम्बई के 26/11 आतंकी हमले में जख्मी एनएसजी कमांडो अलवर के सुनील कुमार ने मानवाधिकार आयोग को बयां की व्यथा, मुख्यमंत्री से मुलाकात का इंतजार

जयपुरOct 17, 2018 / 01:25 am

Shailendra Agarwal

sachivalya

सचिवालय

मुम्बई के ताज होटल में 26/11 के आतंकी हमले को भुला नहीं सकता, लेकिन उससे ज्यादा पीड़ा है देश के लिए आतंकियों की गोली खाने के बाद भी 10 साल में राज्य सरकार ने सम्मान नहीं दिया। आतंकी हमले में 8 गोलियां लगीं, उनमें से एक आज भी शरीर में है। सरकार घायल सैनिकों की भी सुध ले।
26/11 आतंकी हमले में जख्मी एनएसजी के ब्लेक केट कमांडो रहे अलवर निवासी सुनील कुमार जोधा ने राज्य मानवाधिकार आयोग में उक्त गुहार लगाई है। उन्होंने सवाल किया कि राज्य के राजकीय सम्मान से जांबाज सैनिक सम्मानित क्यों नहीं किए जाते? इसके लिए आयोग अध्यक्ष प्रकाश टाटिया व सदस्य महेशचन्द्र शर्मा की बेंच ने परिवाद गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजकर रिपोर्ट मांगी है। इसके जरिए सुनील जैसे जांबाज सैनिकों की वीरता को सम्मानित करने के लिए सरकार की योजनाओं की जानकारी मांगी गई है। अब इस परिवाद पर 4 दिसम्बर को सुनवाई होगी।
राज्य ने क्यों नहीं किया सम्मान?
परिवाद में इस जांबाज की व्यथा है कि जान की परवाह किए बिना मासूम जिंदगी को बंधन से मुक्त कराने की वीरता दिखाई। 13 जनवरी 2009 को सेना मेडल से नवाजा गया। सेना को नियमों के अनुसार जो लाभ देना था, वह मिल गया है। गेलेंट्री अवार्ड भी मिला। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार तक ने वीरता के लिए सम्मान किया और 5 लाख रुपए दिए, लेकिन इस जांबाज को राज्य में राजकीय सम्मान का इंतजार है।
यह उठाया सवाल
परिवाद में सवाल उठाया है कि सुनील कुमार जैसी वीरता दिखाने वालों को राज्य सरकार की ओर से किस-किस प्रकार की सहायता दी जाती है? एेसी क्या-क्या योजनाएं हैं, जिनका लाभ सुनील जैसे जांबाज व उनके पत्नी-बच्चों को मिल सकता है।
मिले, लेकिन सम्मान नहीं मिला
सुनील कुमार के नजदीकियों का कहना है कि घटना के समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और विपक्ष में रहते वसुंधरा राजे से मुलाकात की। भाजपा सरकार आने पर मुख्यमंत्री से मिलने के लिए स्थानीय विधायक बनवारीलाल सिंघल व ज्ञानदेव आहुजा के जरिए प्रयास किया लेकिन मुलाकात का अब भी इंतजार है। इस बीच भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों से जुड़े लोग भी सुनील कुमार से मिले, उन्हें शॉल ओढ़ाई और माला पहनाई लेकिन राजस्थान सरकार से सम्मान नहीं मिला। हालांकि महाराष्ट्र सरकार व बीसीसीआइ ने सम्मान दिया। सुनील कुमार के नजदीकियों का कहना है कि सुनील चाहते हैं जांबाज घायल सैनिकों की सरकार सुध ले और उनके लिए घर की व्यवस्था करने में सहयोग करे।
प्रशिक्षण पूरा होने से पहले ही दिखाई जाबांजी
अलवर जिले के मूंडिया खेड़ा गांव के रहने वाले सुनील कुमार जोधा कमांडो प्रशिक्षण के लिए 27 जून 2008 को मानेसर स्थित एनएसजी परिसर पहुंचे। तीन माह की कड़ी परीक्षा के बाद प्रशिक्षण के लिए चयन हो गया और यूनिट प्रशिक्षण चल रहा था। जब मुम्बई के ताज होटल में 26/11 का आतंकी हमला हुआ तो दो दिन का प्रशिक्षण बाकी रह गया था। वह ट्रेन, बस, भवन और होटल में आतंकी हमले के समय कार्रवाई के लिए प्रशिक्षित 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप के सदस्य थे। 26 नवम्बर 2008 को आतंकी हमले वाली रात मानेसर में ड्यूटी दे रहे थे। अचानक मुम्बई हमले की जानकारी मिली और रात तीन बजे विमान से मुम्बई रवाना हुए। सुबह 5 बजे 200—225 एनएसजी कमांडो वहां पहुंच गए। मुम्बई पुलिस उनको मौके पर ले गई। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन सहित सभी को ताज होटल की लॉबी में छोड़ दिया गया। उस समय तक आतंकियों के छिपने के स्थान का पता नहीं था, लेकिन चारों ओर खून बह रहा था, आग लगी हुई थी और लोग जमीन पर पडे़ हुए थे। इसके बाद होटल में कमरों की तलाशी का अभियान शुरू किया। छठी मंजिल पर पहुंचे तो एक कमरा नहीं खुला, आतंककारियों ने कमांडो देखकर फायरिंग शुरू कर दी। फायर को रोकने का प्रयास किया और गेट को विस्फोट करके तोड़ा। इस कार्रवाई में एक साथी राजवीर को चोट लगी, वहीं एक आतंकी को मार गिराया जबकि बाकी भाग निकले। इसी दौरान कमांडो टीम को आतंकी समझकर खिड़की से कूदने का प्रयास कर रही एक वृद्ध महिला को बचाया। कमरे में आग लगी हुई थी और दम घुट रहा था। दो दिन से कुछ खाया भी नहीं था। कपड़े अधिक पहने होने के कारण गर्मी लग रही थी, इसलिए शर्ट उतार दी। इसी दौरान दो आतंकियों ने ग्रेनेड फेंका। बिजली कटी हुई थी, पानी टपक रहा था। संभलते हुए ऊपर चढ़ रहे थे। एक आतंकी को मार गिराया और ऊपर की मंजिल से एक आतंकी ने फायर किया। इसकी चपेट में सुनील कुमार जोधा आ गए और गोली लगने के कारण सीढ़ी से लुढ़कते हुए नीचे गिर गए। पहली मंजिल पर मौजूद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने हाल पूछा, उनको गोली लगने की जानकारी दी लेकिन आतंकी फायर नहीं करे इसलिए मरा हुआ होने का अहसास कराया। जैसे-तैसे बचकर सुनील एम्बुलेंस तक पहुंचे और जब गोली निकलना शुरू हुआ तो दो दिन तक होश नहीं आया। होश आया तो पता चला मेजर उन्नीकृष्णन उनसे हमेशा के लिए विदा हो गए। जब सुनील बॉम्बे हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे तब उनको अपने छोटे से बच्चे की याद आ रही थी। अब हाथ में रॉड डली हुई है, कंधे के पास गोली फंसी है। सुनील का कहना है डॉक्टरों के अनुसार गोली खिसकते हुए कंधे पर पहुंच जाएगी तब वह तो निकल जाएगी, लेकिन बड़े नेताओं ने 10 साल तक उसको सम्मान नहीं देकर जो घाव दिया है वह भरने वाला नहीं है।

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