यह भी पढें : ब्लू व्हेल गेम के खिलाफ स्कूलों ने कसी कमर, वर्कशॉप और जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश सी-स्कीम निवासी के.के. अग्रवाल ने अपने घर की छत पर यह बॉटनिकल उद्यान लगाया है। अग्रवाल बताते हैं कि उन्हें गार्डनिंग का शौक था, तो उन्होंने सन 1972 से अपने घर के आंगन में फल-सब्जी व गुलाब के सीजनेबज पौधे लगाकर इसकी शुरुआत की। धीरे-धीरे कुछ अलग हटकर वनस्पतियों के संकलन का जुनून यहां तक ले आया। आंगन में पौधे लगाने के लिए जगह नहीं मिली, तो ऐसे में मकान की छत पर ही गार्डन बना शौक पूरा किया।
यह भी पढें : नशे में पत्नी से मोबाइल पर बात करते हुए मकान की बालकॉनी से गिरा इंजीनियर, मौत यहां करीब 4000 स्क्वायर फीट में यह गार्डन बनाया गया है, जिसका कुछ हिस्सा लौहे की जालियों से कवर्ड भी हैं। अग्रवाल रोजाना इनकी देखभाल करते हैं। वे बताते हैं कि हालांकि ऐसे पौधों को रोजाना पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन दो-तीन हफ्ते में इनको लिक्विड फर्टिलाइजर्स और समय-समय पर पानी देते हैं। गार्डन में सबसे छोटे पौधे एक सेंटीमीटर और अधिकतम 30 से 35 फीट की लम्बाई का भी है।
यह भी पढें : नोटों की गड्डियां देख डोला मन, सोते हुए मालिक का काटा गला लिम्का बुक अवॉर्ड भी मिलाअग्रवाल बताते हैं कि इन दुर्लभ व अद्भुत पौधों मैक्जिमम वैरायटी के संग्रहण के लिए उन्हें 1995, 1996, 1998, 2015 व 2016 में लिम्का बुक अवॉर्ड भी मिल चुका है।
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यह प्रजातियां हैं यहां साउथ अफ्रीका की विभिन्न कंट्रीज के सेकुलेंस पौधे-
एलायनोप्सिस, एंटिगिबियम, एंटिमिमा, एयरगिरोडेरमा, एरिडारिया, बरगरेटस, बिजलिया, कॉर्पोग्राटेस, केरूरेंथस, सफेलोफाइलम, चेस्मेटोफाइलम, चिरोडोप्सिस, कोरोफाइटम, सिलेन्ड्रोफाइलम, डिडियोमाउटस, डिंटरनथस, एब्रेकटेओला, फोकेरिया, फेरिस्टेरिया, जीबियम, ग्लोरिफाइलम, एलियंथस, हरोरे, हिरेंथस, जेन्सेनोबोट्रिया, ज्यूटेंडिनेटियाएलेम्प्रेन्थस, लेपिडारिया, लिथोप्स सहित करीब 2000 प्रजातियां इस गार्डन में देखने को मिलती हैं। अग्रवाल का दावा है कि भारत में लिथोप्स की सबसे अधिक वैरायटी उनके गार्डन में हैं।
यह भी पढें : सुसाइड करने से पहले लिखा, मुझे परेशान किया है, यह जिंदा नहीं रहना चाहिए… अमरीकन कैप्टस की प्रजातियांएकेन्थोकैल्शियम, एन्सिस्ट्रोकैप्टस, अरिक्यूपा, एरियोकार्पर, एस्टोफाइटम, एस्ट्रोकैप्टस, ब्लोसफिल्डिया, कार्निजिया, सीरियस, कोपियापो, कोरिफेंटा, डेन्योजा, डिस्को कैक्टस, एचिनो कैक्टस, एचिनोसीरियस, एकिनोप्सिस, एस्कोवारिया, एस्पोस्ट्वा, फेरोकेक्टस, फीलिया, ग्लेंदूली कैक्टस, जिम्नोकैक्टस, हेमेटोकैक्टेस, हरिसिया, ल्यूसेंटोवर्गिया, लोबिविया, लोफोफोरा, मेमिलेरिया, मेटूकाना सहित करीब 300 से 400 प्रजातियां।