बोरिस जॉनसन ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। हालंाकि अटलांटिक देश इस बात से खुश नहीं हैं। 55 वर्षीय कंजर्वेटिव नेता को अक्सर ‘मर्माइट फिगर’ बोला जाता है। मर्माइट नमकीन ओर मोम जैसा पदार्थ होता है, जिसे ब्रिटिश अपने टोस्ट पर लगाते हैं। अर्थ ये कि मर्माइट की तरह जॉनसन को या तो वे पसंद करते हैं, या नफरत। टोबी यंग कहते हैं, मैं बोरिस को 1983 से जानता हूं, जब हम ऑक्सफोर्ड में साथ पढ़ते थे। उस वक्त 19 वर्षीय जॉनसन के बारे में खास बात ये है कि वह अपना काम समय से पहले ही पूरा कर लेता था, जबकि हम जूझ रहे होते थे। राजनीति में आने से पहले वे एक पत्रकार थे।
35 वर्ष की उम्र में वे एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक अखबार के प्रधान संपादक बने, लेकिन उन्हें टाइम्स ऑफ लंदन में उनकी पहली नौकरी से निकाल दिया गया था। वे एक उदार रूढ़ीवादी हैं, जो अप्रवासियों के समर्थक हैं। वे एक बार प्रवासियों के गौरव मार्च में भी शामिल हुए थे। वे विदेश सचिव भी रहे हैं, लेकिन लंदन के मेयर के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की। जॉनसन के आठ वर्ष के कार्यकाल में अपराधों में गिरावट आई, निर्माण कार्यों में तेजी और यातायात संकट को 50 फीसदी तक कम कर दिया। 2016 के जनमत संग्रह में ब्रेग्जिट के लिए लीव अभियान का नेतृत्व किया।
ये सारी खासियत उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में थेरेसा मे का आदर्श उत्तराधिकारी बनाता है। जॉनसन ने 31 अक्टूबर को ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने का वादा किया है, सौदा हो या न हो। और यदि वे ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो उन्हें चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन यदि संसद उन्हें रोकती है, जैसी की संभावना है तो इस सूरत में उन्हें विषम परिस्थितियों में चुनाव लडऩा होगा। एक ओर ईयू विरोधी बे्रग्जिट पार्टी और दूसरी ओर जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी का सामना करना होगा। कॉर्बिन स्कूल के समय से पूंजीवाद से नफरत करने वाले समाजवादी हैं, जिन्होंने हाल ही में ब्रिटेन के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज के नेतृत्व का स्वागत किया। यदि ब्रेग्जिट से पहले चुनाव होता है, तो बोरिस एकमात्र मजबूत उम्मीदवार होंगे और कॉर्बिन को हराकर तबाही को रोक सकते हैं। सवाल वही कि क्या मिस्टर मर्माइट ब्रिटेन के मिस्टर इन्क्रेडिबल साबित होंगे?
ये सारी खासियत उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में थेरेसा मे का आदर्श उत्तराधिकारी बनाता है। जॉनसन ने 31 अक्टूबर को ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने का वादा किया है, सौदा हो या न हो। और यदि वे ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो उन्हें चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन यदि संसद उन्हें रोकती है, जैसी की संभावना है तो इस सूरत में उन्हें विषम परिस्थितियों में चुनाव लडऩा होगा। एक ओर ईयू विरोधी बे्रग्जिट पार्टी और दूसरी ओर जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी का सामना करना होगा। कॉर्बिन स्कूल के समय से पूंजीवाद से नफरत करने वाले समाजवादी हैं, जिन्होंने हाल ही में ब्रिटेन के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज के नेतृत्व का स्वागत किया। यदि ब्रेग्जिट से पहले चुनाव होता है, तो बोरिस एकमात्र मजबूत उम्मीदवार होंगे और कॉर्बिन को हराकर तबाही को रोक सकते हैं। सवाल वही कि क्या मिस्टर मर्माइट ब्रिटेन के मिस्टर इन्क्रेडिबल साबित होंगे?
सिंहासन की शक्तियां रोकेंगी बोरिस को ?
बोरिस जॉनसन ने चेतावनी दी है कि यदि वह प्रधानमंत्री बने तो बे्रग्जिट पर समझौता नहीं होने पर वे ब्रिटेन की संसद को भंग कर देंगे। कुछ राजनेता अदालत में उनसे लडऩे की योजना बना रहे हैं। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। ब्रिटेन के संविधान के मुताबिक संसद को निलंबित करने की शक्ति प्रधानमंत्री नहीं, सिंहासन के पास है। हालंाकि प्रधानमंत्री की सिफारिश मानी जाती है। लेकिन कई लोग इससे असहमत हैं। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि बकिंघम पैलेस ऐसा क्यों नहीं कर सकता? यदि बिना समझौते के ब्रिटेन ईयू से बाहर आता है तो बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे सांसदों ने इसे रोकने का मन बना लिया है, भले ही सरकार गिरानी पड़े।
बोरिस जॉनसन ने चेतावनी दी है कि यदि वह प्रधानमंत्री बने तो बे्रग्जिट पर समझौता नहीं होने पर वे ब्रिटेन की संसद को भंग कर देंगे। कुछ राजनेता अदालत में उनसे लडऩे की योजना बना रहे हैं। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। ब्रिटेन के संविधान के मुताबिक संसद को निलंबित करने की शक्ति प्रधानमंत्री नहीं, सिंहासन के पास है। हालंाकि प्रधानमंत्री की सिफारिश मानी जाती है। लेकिन कई लोग इससे असहमत हैं। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि बकिंघम पैलेस ऐसा क्यों नहीं कर सकता? यदि बिना समझौते के ब्रिटेन ईयू से बाहर आता है तो बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे सांसदों ने इसे रोकने का मन बना लिया है, भले ही सरकार गिरानी पड़े।