मदनलाल सैनी के निधन के बाद भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष बनाने का मामला लगातार लंबा खिचता चला जा रहा है। आने वाले कुछ महीनों में प्रदेश में स्थानीय निकाय, पंचायत के साथ कुछ विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव होने हैं। इन चुनावों में फायदा उठाने के लिए भाजपा जातिगत समीकरण बिठाने के फेर में उलझ गई। केन्द्रीय संगठन और आरएसएस का दबाव दलित या किसी जाट नेता को अध्यक्ष बनाने का बना हुआ है। जबकि प्रदेश के नेता किसी ब्राह्मण को बनाने के इच्छुक है।
-ऐसे बिठा रहे जातिगत समीकरण पार्टी की नजर प्रदेश की बड़ी जातियों पर है। वैश्य समाज और राजपूत समाज से दो-दो नेताओं को पार्टी ने अहम जिम्मेदारी दे रखी है। जबकि दलित और जाट जाति को भी सत्ता में बड़ी भागीदारी मिली हुई है। ऐसे में ब्राह्मण वर्ग ही ऐसा है, जिसके किसी नेता को केन्द्र और प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी नहीं दे रखी है। यही वजह है कि प्रदेश के नेता ब्राह्मण वर्ग के नेता की वकालत कर रहे हैं।
-एक धड़ा बंद करना चाहता है जातिवाद को बढ़ावा देनापार्टी में एक धड़ा ऐसा भी है, जो प्रदेश अध्यक्ष जैसे पद को जातिवाद से बचाने की पैरवी कर रहा है। यह धड़ा चाहता है कि प्रदेश अध्यक्ष पद पर जाति विशेष के नेता की बजाय किसी कर्मठ कार्यकर्ता को आसीन करना चाहिए। इससे संगठन को मजबूती मिलेगी।
-लॉबिंग भी जोरों परपार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए छह से ज्यादा नेता अपनी लॉबिंग में लगे हुए हैं। इनमें संघ से जुड़े नेता ज्यादा हैं। एक की सिफारिश होती है तो दूसरा नेता सक्रिय हो जाता है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए इस तरह से लॉबिंग से भी पार्टी परेशान है।