पिछले एक वर्ष की बात करें तो ग्रेटर निगम ने बमुश्किल 30 पट्टे जारी किए हैं। इनमें से कई सिफारिशी हैं। यही वजह है कि आम आदमी निगम मुख्यालय से लेकर जोन कार्यालयों में आता है। दिन भर चक्कर लगाता है और शाम को घर चला जाता है। इस मामले को लेकर निगम की अतिरिक्त आयुक्त सीमा कुमार से संपर्क किया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। मैसेज का भी उन्होंने जवाब नहीं दिया।
आयुक्त ने निकाले आदेश
10 सितंबर को निगम आयुक्त रूकमणी रियाड़ ने एक आदेश निकाला। इसमें जोन उपायुक्त और उपायुक्त राजस्व-द्वितीय अपनी स्पष्ट अभिशंसा के साथ महापौर से पट्टे जारी किए जाने की प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त करने की बात कही। स्वीकृति के बाद जोन उपायुक्त/ उपायुक्त राजस्व-द्वितीय और महापौर के हस्ताक्षर से ही पट्टे जारी किए जाएंगे।
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चार माह में कुछ भी नहीं बदला
29 अगस्त को नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा निगम मुख्यालय पहुंचे थे। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि जिन पट्टों की राशि जमा हो गई है, उनको अगले 15 दिन में जारी कर दिए जाएं। लेकिन, चार माह बाद भी हालात ज्यों के त्यों हैं। स्थिति यह है कि फाइल जेडीए में होने से लेकर भूखंड सृजित न होने की बात कहकर अधिकारी फरियादियों को टरका देते हैं।
पट्टे भी नहीं बदल पाए
प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान करीब 400 पट्टों की प्रशासनिक स्वीकृति मिलने से लेकर फीस जमा व अन्य काम हो गए थे। सिर्फ पट्टा जारी होना था, लेकिन आचार संहिता लगने से पट्टे नहीं मिल सके। चुनाव के बाद सरकार बदली तो इन पट्टों पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की फोटो होने के कारण बांटा नहीं जा सका। ऐसे में पट्टे बदलने की प्रक्रिया को भी ग्रेटर निगम के अधिकारी पूरी नहीं कर पाए।
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