प्रार्थना पत्र में कहा कि इस प्रकरण में कोई मेरिट नहीं है, इस कारण राज्य सरकार इसे वापस लेना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट से मामला वापस लेने की अनुमति मांगी गई है। अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा के अनुसार इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि क्या वह मामले को जारी रखना चाहती है, जिस पर जवाब के लिए राज्य सरकार ने कोर्ट से समय मांगा था।
अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने बताया कि रिकॉर्ड और मामले के तथ्यों व परिस्थितियों की जांच की गई, जिसमें सामने आया कि मैरिट पर मामला सुप्रीम कोर्ट में चलने लायक नहीं है। इस कारण इसे आगे बढ़ाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इन परिस्थितयों में न्याय हित में सुप्रीम कोर्ट का समय बचाने के लिए मामला वापस लेने का निर्णय किया।
यह था मामला
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने
राजस्थान के फोन टैपिंग मामले में 25 मार्च 2021 को गजेन्द्र सिंह शेखावत की एफआईआर दर्ज की। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 409 व 120 बी, भारतीय तार अधिनियम 1885 की धारा 26 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 72 और 72ए के तहत आरोप लगाए गए। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट में दावा पेश किया, जिसमें दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई। दावे में कहा था कि इस फोन टैपिंग प्रकरण में केवल राजस्थान राज्य को ही एफआईआर दर्ज का अधिकार है। दिल्ली पुलिस को जांच करने का अधिकार नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका अब भी लंबित
उधर, शेखावत की ओर दिल्ली में दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द कराने के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा ने भी याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट में एफआईआर को चुनौती दी। दोनों याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित हैं।