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जयपुर

Rajasthan Assembly Election 2018: भैरोंसिंह शेखावत के गांव खाचरियावास में झलका मतदाताओं का दर्द

‘हमारे गांव में दीया तले अंधेरा रहा,पूरे क्षेत्र में विकास की जरूरत है। नेताओं को जातिवाद से अलग कुछ नहीं सूझता’ खाचरियावास निवासी बाबूलाल ने चर्चा की शुरूआत ही इसी बात से की।

जयपुरOct 21, 2018 / 05:44 pm

Kamlesh Sharma

Bhairon Singh Shekhawat village
विशाल ‘सूर्यकांत’/ खाचरियावास। ‘हमारे गांव में दीया तले अंधेरा रहा,पूरे क्षेत्र में विकास की जरूरत है। नेताओं को जातिवाद से अलग कुछ नहीं सूझता’ खाचरियावास निवासी बाबूलाल ने चर्चा की शुरूआत ही इसी बात से की। आगे कहते हैं कि पांच कोस तक खाचरियावास के पानी की पूछ थी, मगर अब खाचरियावास को ही मीठे पानी को तरस गया है। गांव में बाबोसा का घर है, लोगों की जुबान पर बातें हैं, लेकिन सरकार होने के बावजूद विकास नहीं पहुंचा है।
हैदराबाद से चुनाव के वक्त अपने गांव आए सत्यनारायण सोमानी कहते हैं कि बाबोसा राजनीति में रहे और उनके पीछे आती-जाती सरकारों ने खाचरियावास गांव के साथ ही राजनीति कर ली। पहला चुनाव दांतारामगढ़ से लड़ा, फिर बाबोसा पूरे राजस्थान के नेता हो गए, गांव पीछे छूटता रहा। भैरोंसिंह जी के वक्त में विकास हुआ नहीं और बाद में आई सरकारों का रवैया ऐसा रहा कि भैरोंसिंह जी का गांव है, इसीलिए फाइलें नीचे पटक दो। खाचरियावास में बीजेपी से जुड़े कैलाश चंद जैन कहते हैं कि ‘भैरोंसिंह जी के नहीं रहने से बहुत फर्क पड़ा है। वो राजस्थान में थे, हिन्दुस्तान के भी मालिक रहे, हमारे काम तो उनके नाम से ही काम हो जाते थे। अब लगता है कि हम संघर्ष करते-करते पीछे छूट रहे हैं।’
बाबूलाल अपने जातिवाद के मुद्दे पर और जोर देते हुए कहते हैं कि जिले में जातिवाद का हाल यह है कि नेता अपनी जाति के अलावा किसी अन्य की ‘डिजायर’ तक नहीं लिखते। मोहम्मद सत्तार इस बार के चुनावों को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं। बेरोजगारी, पानी और बिजली बड़ा मुद्दा मानते हैं, लेकिन कहते हैं कि कोई पार्टी का नेता उनकी सुनेगा नहीं, उन्हें मालूम है। खाचरियावास गांव दांतारामगढ़ विधानसभा सीट का हिस्सा है मगर छह बजे बाद, उपखंड मुख्यालय से जयपुर और सीकर जाने के लिए आपको एक अदद गाड़ी तक नहीं मिलेगी।

साथ बैठे राजकुमार सोमानी और राजेश को आस-पास सरकारी कॉलेज नहीं होना सालता है। वो कहते हैं कि सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के गांव धानक्या को याद रखा, लेकिन खाचरियावास को भूल गई। क्षेत्र में सरकारी कॉलेज नहीं है और यहां के बच्चे कॉलेज के लिए 50 किलोमीटर दूर जाते हैं। प्राइवेट कॉलेज में जाना हर किसी के बूते की बात नहीं। बच्चे कुछ बड़े होते हैं तो रेनवाल में बेलदारी करते हैं या टाइल बनाने की फैक्ट्रियों में लग जाते हैं। परिवार सक्षम हुआ तो बच्चे बाहर नौकरी करने चले जाते हैं। हमारी बच्चियों की किस्मत 12 वीं में पढ़ने के बाद ही तय हो जाया करती है। बच्चियों को बाहर कॉलेज कैसे भेजे?
खाचरियावास गांव के बुजुर्ग किसनराम कहते हैं कि हमारे यहां दो-तीन चुनावों से स्थिति ये रही कि जिसकी पार्टी सत्ता में उसका विधायक नहीं, जिसका विधायक नहीं अब उसकी सरकार बन गई। बाबोसा के गांव और विधानसभा क्षेत्र में विकास क्यों नहीं हुआ? ये सवाल कांग्रेस के नेताओं से पूछिए के समर्थकों की राय में खाचरियावास और दांतारामगढ़ के लोगों के साथ बीजेपी ने ही अन्याय किया है।
नावां तक बीसलपुर का पानी आ गया लेकिन खाचरियावास,दातांरामगढ़ क्षेत्र में पानी नहीं लाया गया, क्योंकि यहां कांग्रेस के नारायण सिंह विधायक हैं। इसी सवाल पर बीजेपी के नेता बसंत कुमावत कहते हैं कि सरकार ने हर पंचायत में पैसा दिया है, लेकिन विधायक अगर विधानसभा में आवाज नहीं रखें तो अधिकारी भी ध्यान नहीं देते। खाचरियावास के पुराने लोग बताते हैं कि एक वक्त में खाचरियावास के पानी की आस-पास के पांच किलोमीटर के दायरे में मांग थी।
तीस सालों में खाचरियावास के आस-पास के गांवों को यहीं से पानी दिया और आज खाचरियावास ही पीने के साफ पानी के लिए तरस रहा है। भूजल स्तर इतना नीचे हैं कि की वजह से आरओ प्लांट के पानी का उपयोग करना पड़ रहा है। प्लांट लगने के बाद भी समस्याएं खत्म नहीं हुई। जलदाय विभाग के ट्यूबवेल से जोड़ने पर बार-बार लाइन फूट जाती है। खारे पानी से आए दिन पाइप लाइन में टूट-फूट होती हो जाती है।

खाचरियावास गांव में आने के लिए आवागमन के साधन भी एक किलोमीटर दूर तक ही आते हैं इसके बाद दूसरा रास्ता ले लेते हैं। सरकारें आती—जाती रही, लेकिन गांव के लोगों को राजनीति का एक बड़ा दौर कहलाने वाले शख्स का गांव होने का गुमान अब तक नसीब नहीं हो पाया है। बिजली—पानी मयस्सर नहीं, मगर मिट्टी खाचरियावास गांव की है, इस मिट्टी ने बाबोसा को आखिरी वक्त तक जिंदादिल और उम्मीद से लबरेज रखा। … गांव के लोग भी तो इसी मिट्टी में रचे-बसे हैं। अहमद फ़राज़ का एक मौजूं शेर है—
‘अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो’

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