टीबी बेहद ही खतरनाक संक्रामक बीमारी है, जिससे हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। शायद यहीं कारण है कि इसे कोविड महामारी से भी ज्यादा खतरनाक और संक्रामक बताया जा रहा है। चिंता की बात यह है कि भारत में इसके सबसे ज्यादा मरीज पाए जाते हैं, जबकि बीमारी का इलाज भी संभव है।
केस – 1
जयपुर की 25 वर्ष की रश्मि (परिवर्तित नाम) को पिछले कुछ दिनों से खांसी और बुखार की तकलीफ हो रही थी। दवाइयां और घरेलू उपचार के बाद भी खांसी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। डॉक्टर को दिखाने पर उसने टीबी की आशंका जताई। बाद में जांच में पता चला कि उसे टीबी थी। रश्मि ने डॉक्टर के अनुसार टीबी का पूरा कोर्स लिया। इसके बाद रश्मि पूरी तरह ठीक हो गई।
केस – 2
भीलवाड़ा के राज (परिवर्तित नाम) को सांस लेने या खांसने में दर्द होता था। सीढ़ियां चढ़ना भी उसके लिए मुश्किल हो गया था। जांच कराने पर टीबी की बीमारी का पता चला। कुछ दिनों तक तो राज ने दवाइयां नियमित तौर पर ली। इसके बाद आराम मिलते ही कोताही बरतना शुरू कर दिया। दवाइयां बंद करते ही वापस से इस बीमारी ने राज को फिर से अपनी जद में ले लिया।
एक अनुमान के मुताबिक टीबी कोविड से भी ज्यादा खतरनाक संक्रामक बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक रिपोर्ट में बताया कि साल 2023 में दुनियाभर में 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों में तपेदिक का पता चला है। यह संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा 1995 में ट्रैक रखना शुरू करने के बाद से दर्ज किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या है। इससे पहले 2022 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी के 7.5 मिलियन (75 लाख) मामले दर्ज किए। पिछले साल लगभग 1.25 मिलियन (12.5 लाख) लोगों की टीबी से मृत्यु भी हुई है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि टीबी के ज्यादातर मामले दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के लोगों में देखे जा रहे हैं।
भारत समेत पांच देशों में सबसे ज्यादा मरीज
भारत में टीबी बीमारी के 26%, इंडोनेशिया 10%, चीन में 6.8%, फिलीपींस 6.8% और पाकिस्तान 6.3% मरीज पाए जाते हैं। ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2024 के मुताबिक इस बीमारी का बोझ वैश्विक स्तर पर 56 फीसदी है। ये बीमारी वैश्विक स्तर पर 55 फीसदी पुरुषों में और 33 फीसदी महिलाओं और 12 फीसदी बच्चों और युवाओं में पाई जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 में विश्व को टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है और भारत सरकार ने भारत में टीबी मुक्ति का लक्ष्य 2025 का रखा था, लेकिन कोरोना के बाद स्थिति में बदलाव हुआ।
क्यों होती है बीमारी
ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक संक्रामक बीमारी है, जो टीबी बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होता है। यह आमतौर पर फेफड़ों में होता है, जिसे पल्मोनरी टीबी कहते हैं, लेकिन यह किडनी, स्पाइन, ब्रेन या शरीर के किसी अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है, जिसे एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी कहते हैं। ज्यादातर ये बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलते हैं। संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने की वजह से ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं।
ये होते हैं बीमारी के लक्षण
टीबी के मरीज को लगातार खांसी रहती है, तीन सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहने वाली खांसी इसका प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा, खांसी के साथ खून, बलगम, छाती में दर्द, गैर-इरादतन वज़न कम होना, थकान रहना, बुखार, रात में सोते समय पसीना आना और भूख न लगना भी इनमें शामिल है।
इलाज है संभव
जयपुर के इटरनल हॉस्पिटल में पल्मोनरी मेडिसिन के निदेशक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. के.के शर्मा ने बताया कि टीबी के इलाज के रूप में दी जाने वाली दवाओं का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है, ताकि संक्रमण को शरीर से पूरी तरह से खत्म किया जा सके और उससे फिर से होने से रोका जा सके। अगर टीबी का मरीज़ इलाज को बीच में छोड़ देता है तो उसे वापस संक्रमण होने की संभावना रहती है। इन मरीज़ों में ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की संभावना बढ़ जाती है। ये लोग खुद के साथ-साथ सोसाइटी के लिए भी नुक़सानदेय बन सकते हैं, रेसिस्टेंट टीबी को फैला कर। इस बीमारी का इलाज पूरी तरह से संभव है लेकिन एक बार देरी होने के बाद मरीज की मौत तक हो सकती है। इसलिए लगातार खांसी होने पर इसकी जांच जरूर करवानी चाहिए और उचित इलाज करवाना चाहिए।
ये जोखिम कारक बढ़ा सकते हैं खतरा-
वे लोग जो किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में हैं, जैसे, परिवार के सदस्य, मित्र या सहकर्मी।
एचआईवी पॉजिटिव।
किसी कारण से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना।
अत्यधिक धूम्रपान, शराब या किसी अन्य नशीले पदार्थ का सेवन करना।
मधुमेह रोग।
गुर्दे की गंभीर बीमारी वाले लोग।
कीमोथेरेपी या स्टेरॉयड दवाई लेने वाले या अंग प्रत्यारोपण वाले।
शरीर को पर्याप्त पोषण न मिल पाना।
गर्भवती महिलाएं या जिनकी हाल ही में डिलीवरी हुई है।
मुफ्त होता है टीबी का इलाज
किसी भी व्यक्ति को बीमारी के दौरान अपना विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस गंभीर बीमारी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा टीबी का इलाज पूरे देश में मुफ्त किया जाता है। वहीं मरीज देश के किसी भी कोने में हो, अगर इस बीमारी से जूझ रहा है तो उसका रिकॉर्ड रखा जाता है।
केस – 1
जयपुर की 25 वर्ष की रश्मि (परिवर्तित नाम) को पिछले कुछ दिनों से खांसी और बुखार की तकलीफ हो रही थी। दवाइयां और घरेलू उपचार के बाद भी खांसी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। डॉक्टर को दिखाने पर उसने टीबी की आशंका जताई। बाद में जांच में पता चला कि उसे टीबी थी। रश्मि ने डॉक्टर के अनुसार टीबी का पूरा कोर्स लिया। इसके बाद रश्मि पूरी तरह ठीक हो गई।
केस – 2
भीलवाड़ा के राज (परिवर्तित नाम) को सांस लेने या खांसने में दर्द होता था। सीढ़ियां चढ़ना भी उसके लिए मुश्किल हो गया था। जांच कराने पर टीबी की बीमारी का पता चला। कुछ दिनों तक तो राज ने दवाइयां नियमित तौर पर ली। इसके बाद आराम मिलते ही कोताही बरतना शुरू कर दिया। दवाइयां बंद करते ही वापस से इस बीमारी ने राज को फिर से अपनी जद में ले लिया।
एक अनुमान के मुताबिक टीबी कोविड से भी ज्यादा खतरनाक संक्रामक बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक रिपोर्ट में बताया कि साल 2023 में दुनियाभर में 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों में तपेदिक का पता चला है। यह संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा 1995 में ट्रैक रखना शुरू करने के बाद से दर्ज किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या है। इससे पहले 2022 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी के 7.5 मिलियन (75 लाख) मामले दर्ज किए। पिछले साल लगभग 1.25 मिलियन (12.5 लाख) लोगों की टीबी से मृत्यु भी हुई है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि टीबी के ज्यादातर मामले दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के लोगों में देखे जा रहे हैं।
भारत समेत पांच देशों में सबसे ज्यादा मरीज
भारत में टीबी बीमारी के 26%, इंडोनेशिया 10%, चीन में 6.8%, फिलीपींस 6.8% और पाकिस्तान 6.3% मरीज पाए जाते हैं। ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2024 के मुताबिक इस बीमारी का बोझ वैश्विक स्तर पर 56 फीसदी है। ये बीमारी वैश्विक स्तर पर 55 फीसदी पुरुषों में और 33 फीसदी महिलाओं और 12 फीसदी बच्चों और युवाओं में पाई जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 में विश्व को टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है और भारत सरकार ने भारत में टीबी मुक्ति का लक्ष्य 2025 का रखा था, लेकिन कोरोना के बाद स्थिति में बदलाव हुआ।
क्यों होती है बीमारी
ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक संक्रामक बीमारी है, जो टीबी बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होता है। यह आमतौर पर फेफड़ों में होता है, जिसे पल्मोनरी टीबी कहते हैं, लेकिन यह किडनी, स्पाइन, ब्रेन या शरीर के किसी अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है, जिसे एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी कहते हैं। ज्यादातर ये बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलते हैं। संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने की वजह से ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं।
ये होते हैं बीमारी के लक्षण
टीबी के मरीज को लगातार खांसी रहती है, तीन सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहने वाली खांसी इसका प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा, खांसी के साथ खून, बलगम, छाती में दर्द, गैर-इरादतन वज़न कम होना, थकान रहना, बुखार, रात में सोते समय पसीना आना और भूख न लगना भी इनमें शामिल है।
इलाज है संभव
जयपुर के इटरनल हॉस्पिटल में पल्मोनरी मेडिसिन के निदेशक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. के.के शर्मा ने बताया कि टीबी के इलाज के रूप में दी जाने वाली दवाओं का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है, ताकि संक्रमण को शरीर से पूरी तरह से खत्म किया जा सके और उससे फिर से होने से रोका जा सके। अगर टीबी का मरीज़ इलाज को बीच में छोड़ देता है तो उसे वापस संक्रमण होने की संभावना रहती है। इन मरीज़ों में ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की संभावना बढ़ जाती है। ये लोग खुद के साथ-साथ सोसाइटी के लिए भी नुक़सानदेय बन सकते हैं, रेसिस्टेंट टीबी को फैला कर। इस बीमारी का इलाज पूरी तरह से संभव है लेकिन एक बार देरी होने के बाद मरीज की मौत तक हो सकती है। इसलिए लगातार खांसी होने पर इसकी जांच जरूर करवानी चाहिए और उचित इलाज करवाना चाहिए।
ये जोखिम कारक बढ़ा सकते हैं खतरा-
वे लोग जो किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में हैं, जैसे, परिवार के सदस्य, मित्र या सहकर्मी।
एचआईवी पॉजिटिव।
किसी कारण से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना।
अत्यधिक धूम्रपान, शराब या किसी अन्य नशीले पदार्थ का सेवन करना।
मधुमेह रोग।
गुर्दे की गंभीर बीमारी वाले लोग।
कीमोथेरेपी या स्टेरॉयड दवाई लेने वाले या अंग प्रत्यारोपण वाले।
शरीर को पर्याप्त पोषण न मिल पाना।
गर्भवती महिलाएं या जिनकी हाल ही में डिलीवरी हुई है।
मुफ्त होता है टीबी का इलाज
किसी भी व्यक्ति को बीमारी के दौरान अपना विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस गंभीर बीमारी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा टीबी का इलाज पूरे देश में मुफ्त किया जाता है। वहीं मरीज देश के किसी भी कोने में हो, अगर इस बीमारी से जूझ रहा है तो उसका रिकॉर्ड रखा जाता है।