ऐसी है एक स्मृति है नेहरू भवन संस्थान। सचिव डॉ. दयालशंकर शर्मा ने बताया कि बाबू राजबहादुर जब 55 वर्ष के हुए तो कुम्हेर, डीग, भरतपुर, कामां आदि के प्रधानों पैसा एकत्रित कर 58 हजार रुपए दिए, उस समय बाबू राजबहादुर ने हाथ नहीं लगाया। उन्होंने कहा कि यह भरतपुर की जनता के लिए है। उन्होंने मिलकर बैंक में जमा करा दी। जब चार लाख रुपए हो गए तो नेहरू भवन संस्थान बनवाया।
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बाबू राजबहादुर के ससुर डॉ. सिन्हा कानपुर के थे, वो महात्मा गांधी के पास ले गए। महात्मा गांधी के वे चिकित्सक थे। तभी बाबू राजबहादुर को प्रेरणा हुई कि किसी भी तरह आजादी का इतिहास नेहरू भवन संस्थान में समाहित करना है।
इसलिए वहां आजादी के आंदोलन में योगदान देने वाले जिले के आंदोलनकारियों की जीवनी, प्रमुख आंदोलनकारियों का पूरा इतिहास, शहीदों की कहानी से संबंधित पुस्तक लिखकर रखवाई गईं। इसके अलावा आंदोलन के दौरान दुर्लभ फोटो की प्रदर्शन भी यहां लगाई गई। जो कि आज तक सुरक्षित है।