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शिविर में आए लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि सप्तऋषियों ने पांच शरीरों की व्याख्या की है, जो हमें दिखाई देता है, उसे स्थूल शरीर कहते हैं, इसको हमारा प्राण कोष संभालता है, जिसे दूसरा शरीर भी कहते हैं। इसके ऊपर मनोमय कोष, फिर ज्ञानमय कोष और इन सबके ऊपर आनंदमय कोष अथवा आनंदमय शरीर कहते हैं। वेदों के अनुसार सबसे कमजोर स्थूल शरीर होता है, जबकि सबसे ज्यादा शक्तिशाली आनंदमय शरीर होता है। इस दौरान अवधूत ने खानपान को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि दुनिया में भुखमरी से इतनी मौत नहीं हो रही है, जितनी मौतें ज्यादा खाने से हो रही हैं, क्योंकि ज्यादा खाने से खाना हमारी आंतों में जमा हो जाता है, जो कई बार तो सालों तक आंतों में ही जमा रह जाता है। इसकी वजह से हमारे शरीर को बीमारियां जकड़ लेती हैं। हमें अपने खान-पान पर नियंत्रण रखना चाहिए। हम लोग जितना कम खाएंगे, उतना ज्यादा ही स्वस्थ रहेंगे। अगर इंसान सुबह 4-5 गिलास गुनगुना पानी पी लें तो ही हमारा शरीर स्वस्थ होना शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हमें चाय भी दूधरहित पीनी चाहिए और खाने के साथ-साथ अपनी दिनचर्या में उपवास को भी शामिल करना चाहिए। इतना ही नहीं एक इंसान को रोजाना 8 से 16 घंटे का उपवास रखना चाहिए।
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