65 वर्षीय विनोद (परिवर्तित नाम) के लिए नई तकनीक वरदान साबित हुई। हार्ट के सबसे महत्वपूर्ण एओर्टिक वॉल्व के गंभीर सिकुड़न होने पर खतरे में आई मरीज की जान को शहर के डॉक्टर्स ने नई तकनीक ट्रांस कैथेटर एओर्टिक वॉल्व इंप्लांटेशन (टावी) से बचा लिया। मरीज को हार्ट की नसों में ब्लॉकेज भी था जिसके कारण इस केस में ब्लॉकेज के लिए बायपास सर्जरी और सिकुड़े वॉल्व के लिए वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी की सलाह दी गई सीके बिरला हॉस्पिटल में इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रूद्रदेव पाण्डेय अपनी टीम के सहयोग से टावी तकनीक के जरिए मरीज की जान बचाई। डॉक्टर ने बताया कि सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द की शिकायत से मरीज अस्पताल की इमरजेंसी में पहुंचा था। जहां उसकी 2डी ईको जांच की तो पता चला कि उसके हार्ट का इजेक्शन फ्रेक्शन सिर्फ 30 से 35 प्रतिशत रह गया है और वॉल्व भी सिकुड़ा हुआ था। मरीज को गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की समस्या थी। सबसे पहले एंजियोप्लास्टी कर दोनों नसों के ब्लॉकेज को ठीक किया गया। मरीज को स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं भी थी जिसके कारण उसकी वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी करने पर उसको जान का खतरा था ऐसे में डॉक्टर्स ने टावी तकनीक से वॉल्व रिप्लेस करने का निर्णय लिया।
सर्जरी के सभी खतरों से बचा मरीज –
वॉल्व रिप्लेसमेंट के लिए अगर मरीज की सर्जरी की जाती तो उसमें मरीज को खतरा था। डॉ. पाण्डेय ने बताया कि एंजियोप्लास्टी के दो दिन बाद जब मरीज सामान्य हुआ तो टावी तकनीक द्वारा पैर की नस से कैथेटेर के जरिए ही मरीज का हार्ट वॉल्व रिप्लेस कर दिया गया। वॉल्व रिप्लेसमेंट प्रोसीजर के दो-तीन घंटे बाद ही मरीज ने खाना खाया और छह से आठ घंटे बाद चलना-फिरना भी शुरू कर दिया। जबकि सर्जरी होने के बाद मरीज को रिकवरी में दो से ढाई महीने का समय लगता। नई तकनीक से मरीज का रिकवरी टाइम बहुत कम हो जाता है और जल्दी ही पुरानी दिनचर्या में लौट जाता है। इस प्रोसीजर को सफल बनाने में सीटीवीएस सर्जन डॉ.आलोक माथुर, डॉ. अक्षय शर्मा, कार्डियक एनिस्थेटिक डॉ. हरीश खन्ना, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुनील बेनीवाल और कैथ लैब टीम का विशेष सहयोग रहा।
सर्जरी के सभी खतरों से बचा मरीज –
वॉल्व रिप्लेसमेंट के लिए अगर मरीज की सर्जरी की जाती तो उसमें मरीज को खतरा था। डॉ. पाण्डेय ने बताया कि एंजियोप्लास्टी के दो दिन बाद जब मरीज सामान्य हुआ तो टावी तकनीक द्वारा पैर की नस से कैथेटेर के जरिए ही मरीज का हार्ट वॉल्व रिप्लेस कर दिया गया। वॉल्व रिप्लेसमेंट प्रोसीजर के दो-तीन घंटे बाद ही मरीज ने खाना खाया और छह से आठ घंटे बाद चलना-फिरना भी शुरू कर दिया। जबकि सर्जरी होने के बाद मरीज को रिकवरी में दो से ढाई महीने का समय लगता। नई तकनीक से मरीज का रिकवरी टाइम बहुत कम हो जाता है और जल्दी ही पुरानी दिनचर्या में लौट जाता है। इस प्रोसीजर को सफल बनाने में सीटीवीएस सर्जन डॉ.आलोक माथुर, डॉ. अक्षय शर्मा, कार्डियक एनिस्थेटिक डॉ. हरीश खन्ना, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुनील बेनीवाल और कैथ लैब टीम का विशेष सहयोग रहा।