दरअसल, निराश्रित गायों को गोशाला भेजने से लेकर अवैध डेयरियों को खत्म करने, श्वानों के बधियाकरण और बंदरों को पकड़कर शहर से बाहर भेजने का काम पशु प्रबंधन शाखा का है। पिछले कई वर्ष से इस काम को करने दिखावा भी किया जा रहा है। तभी तो एक भी काम हैरिटेज सरकार नहीं कर पा रही है। जबकि, सालाना दो करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा रहे हैं। मौजूदा स्थिति की बात करें तो अवैध डेयरियां हटी नहीं हैं। बंदर घर में घुसकर लोगों को डरा रहे हैं और रात को जब लोग घर जाते हैं तो कुत्ते भगाते हैं।
सिर्फ पैसा हो रहा खर्च, परिणाम शून्य – परकोटा क्षेत्र में 100 से अधिक अवैध डेयरियां संचालित हो रही हैं। निगम के पास इनकी सूची है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर पा रहे। एक गाय को पकड़कर गोशाला पहुंचाने का 1345 रुपए निर्धारित है। महीने में 600 गाय गोशाला पहुंचती हैं। सालाना एक करोड़ रुपए के आस-पास निगम खर्च करता है।
-एक कुत्ते को पकड़कर उसका बधियाकरण करने से लेकर दवाई देने के बदले में निगम 1460 रुपए देता है। महीने में 500 कुत्तों का बधियाकरण होता है। निगम हर वर्ष 90 लाख रुपए से अधिक खर्च कर देता है।
-एक बंदर को पकड़कर छोड़ने की एवज में निगम ठेकेदार को 1230 रुपए देता है। औसतन हर माह सौ शिकायतें आती हैं। इनमें 150 बंदर पकड़े जाते हैं। 22 लाख रुपए सालाना खर्च हो रहे हैं।
ये भी हो रहा विवाद राइजिंग राजस्थान की तैयारियों को लेकर सितम्बर में पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. मयंक लाम्बा और डॉ. रणवीर सिंह को हैरिटेज निगम में प्रतिनियुक्ति पर लगाया गया। अब तक दोनों सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से डॉ. लाम्बा का प्रतिनियुक्ति काल बढ़ाने के लिए आयुक्त अरुण कुमार हसीजा ने छह दिसम्बर को पशुपालन विभाग को पत्र लिखा। तर्क दिया कि स्लाटर हाउस में पशु चिकित्सा अधिकारी की जरूरत है। इसके बाद 11 दिसम्बर को पशु प्रबंधन शाखा उपायुक्त सीमा शर्मा ने एक आदेश जारी कर लाम्बा को कार्य मुक्त कर दिया। उन्होंने उनका काम असंतोषजनक बताया।
रिपोर्ट ठंडे बस्ते में सांगानेरी गेट स्थित सब्जी मंडी में 30 नवम्बर को निगम ने कार्रवाई की। जो गायें पकड़ीं, उसमें से चार को आगरा रोड पर उतार दिया गया। इसके बाद आयुक्त ने रिपोर्ट मांगी। पशु पकड़ने वाली फर्म को नोटिस देकर सात दिन में जवाब मांगा, लेकिन आज तक निगम अधिकारियों ने कार्रवाई नहीं की है।