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यह जानकारी शुक्रवार को आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी राजस्थान की ओर से आयोजित कार्यशाला में दी गई। कार्यशाला में बताया कि वर्ष 1998 में 15 से 49 साल तक की प्रोडक्टिव आयु की महिलाओं में खून की कमी का प्रतिशत 48 था। 20 साल बाद यह दो प्रतिशत की कमी के साथ 46 फीसदी तक पहुंचा है। 5 साल से छोटे बच्चों में यह अभी भी 60 प्रतिशत है।
यह जानकारी शुक्रवार को आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी राजस्थान की ओर से आयोजित कार्यशाला में दी गई। कार्यशाला में बताया कि वर्ष 1998 में 15 से 49 साल तक की प्रोडक्टिव आयु की महिलाओं में खून की कमी का प्रतिशत 48 था। 20 साल बाद यह दो प्रतिशत की कमी के साथ 46 फीसदी तक पहुंचा है। 5 साल से छोटे बच्चों में यह अभी भी 60 प्रतिशत है।
यह भी पढें : शादी के तीन महीने बाद ही नई नवेली दुल्हन फंदे से झूली यूनिवसिटी परिसर में कंसल्टेशन ऑन एनीमिया इन राजस्थान चैलेंजेज एंड वे फॉरवर्ड विषय पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में प्रदेश में गर्भवती महिलाओं और बच्चों में खून की कमी को दूर करने के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को और मजबूत बनाए जाने पर चर्चा हुई। यूनिवर्सिटी के डीन रिसर्च डॉ.डी.के.मंगल ने बताया कि वर्ष 2012 में जिनेवा में आयोजित वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली में 2025 तक इसमें कमी के लक्ष्य निर्धारित किए गए थे।
यह भी पढें : कल तक थी तीन मंजिला दुकान के मालिक, आज सडक पर लगा रही गुहार विभिन्न सत्रोंं में पैनल डिस्कसन उन्होंने बताया कि पिछले 20 सालों में लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काफी काम हुआ है, लेकिन अभी भी इसके लिए किए जा रहे कार्यों को और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। कार्यशाला में इन्हीं विषयों पर चर्चा हुई। कार्यशाला को यूनिवर्सिटी के चेयरमैन डॉ.एस.डी.गुप्ता, चिकित्सा विभाग के निदेशक आरसीएच डॉ.एस.एम.मित्तल आदि ने भी संबोधित किया। विभिन्न सत्रों में पैनल डिस्कसन के साथ-साथ वर्तमान नीतियों, उनके क्रियान्वयन आदि पर भी चर्चा हुई।