पेशेंट्स के लिए डाइट
कविता के मुताबिक इस काम से न केवल उन्हें आय हो रही हैं बल्कि वह अपने जैसे कई परिवारों को भी शुद्ध और सात्विक भोजन उपलब्ध करवाने में मदद कर पा रही है। वह कहती हैं कि आज उनकी पहचान मिलेट मां के रूप में होती है क्योंकि उन्होंने तकरीबन सात आठ साल पहले से ही इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया था। वह डॉक्टर, बीएसएफ के जवानों, मरीजों स्टूडेंट्स आदि को मिलेट फूड बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण भी देती हैं।