सोम नदी के तट पर अवस्थित तीन मंजिला मंदिर में करीब 108 खंभों पर टिका हुआ है। इसका प्रत्येक खंभा कलात्मक है। खंभों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है, जो देखने वाले के दिल को छू लेती है। खास बात यह है कि इस तीन मंजिले मंदिर के निर्माण में कही पर भी चूने, गारे या पत्थरों को जोडऩे के लिए किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया गया। मंदिर की दीवारों की चिनाई और छत बनाने में पत्थरों को काटकर एक-दूसरे से क्लेंप कर ऐसे फंसाया गया है कि वह जरा भी नहीं हिलते।
पुरातत्व विभाग की ओर से लगाए गए शिलापट पर लिखा है कि मालवा शैली में निर्मित इस विशाल शिव मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में स्थानीय राजपूत शासकों ने करवाया था। यह तीन मंजिला मंदिर योजनाकार में गर्भगृह, अंतराल, संपूर्ण खलदार, सभामंडप युक्त है। इसमें तीन दिशाओं में प्रवेश द्वार बने हुए है। मंदिर का गर्भगृह भूमितल से 2.7 मीटर नीचे है, जिसके ऊपरी द्वितलीय रथों वाली बनावट है। मंदिर में कुछ जगह 14वीं शताब्दी के अस्पष्ट शिलालेख भी लगे हुए है। मंदिर के उत्तर दिशा में सोमनदी के तट की तरफ चबुतरे बना कर शिवलिंग, नंदी और अन्य खंडित प्रतिमाएं रखी हुई है। मंदिर के जगमोहन की छत पर भी बहुत ही बेहतरिन नक्काशी की गई है। यह बेहद दर्शनीय है, जिसके कला वैभव को देखने हजारों पर्यटक वहां पहुंचते हैं।