आर्कटिक क्षेत्र में कुछ माह पहले एक दिन में पिघली करीब 10 अरब टन बर्फ पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है। इसका दायरा हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। अब लैटिन अमरीकी देश चिली के मध्य तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर बड़ी चिंता बन गई है। चिली के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाहर ताजे पानी के सबसे बड़े भंडार हैं, जिसके सबसे बड़े स्रोत ये ग्लेशियर ही हैं। यह एक पारिस्थतिक आपदा नहीं है, बल्कि चिली की सरकार के लिए आर्थिक और राजनीतिक दुविधा बन गया है। तापमान वृद्धि और पिछले नौ साल में मानवीय गतिविधियां चिली के मध्य क्षेत्र की बर्फ के लिए घातक साबित हो रही हैं। हजारों वर्षों से जमे ये ग्लेशियर औसतमन हर वर्ष एक मीटर पीछे हट रहे हैं। पिघलने की गति ऐसी रही तो दो दशक से भी कम समय में कुछ ग्लेशियर पूरी तरह गायब हो जाएंगे और चिली के सभी ग्लेशियर्स की संख्या भी आधी रह जाएगी। विश्व संसाधन संस्थान के मुताबिक यह गंभीर समस्या है, जिसमें दक्षिण अमरीका के 80 फीसदी ग्लेशियर हैं। राजधानी सैंटियागो और उसके आसपास रहने वाले करीब 70 लाख से अधिक लोगों की जलापूर्ति और फसलों का उत्पादन इन्हीं ग्लेशियर पर निर्भर है। क्योंकि मध्य चिली की कई नदियां सूखने की कगार पर हैं और देश की आबादी का करीब 70 फीसदी हिस्सा उन क्षेत्रों में रहता है, जहां ये ग्लेशियर प्रभाव डालते हैं। 2008 में इनको बचाने के लिए ग्लेशियर इकाई की स्थापना भी की गई, लेकिन पिछले वर्ष इसे महज सात कर्मचारी संभाल रहे थे।
अर्थव्यवस्था का बड़ा स्रोत, इसलिए सरकार ने संरक्षण से हाथ खींचे
दरअसल इन ग्लेशियरों में तांबे के विशाल भंडार हैं। दुनिया में तांबे के कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई इन्हीं खानों से आता है और खनन चिली की अर्थव्यवस्था के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 10 फीसदी है। यानी यहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा स्रोत। चिली के ज्यादातर ग्लेशियर पैटागोनिया क्षेत्र में हैं। 2010 में जांच में पाया गया कि मध्य चिली के अन्य पहाड़ों पर सडक़ निर्माण, मशीनों के शोर, खनन गतिविधियां और ट्रकों की आवाजाही से उठने वाले धूल के गुबार से ये ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिछले दिनों चिली संसद में इनके संरक्षण का एक विधेयक लाया गया था। लेकिन राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा की सरकार इसके पक्ष में नहीं थी। तर्क दिया गया कि इससे चिली की अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी और खनन उद्योग भी बंद हो जाएगा। इस विधेयक का विरोध करने पर जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी।