स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) एक रेयर डिसीस है, जो रीढ़ की हड्डी में मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है। यह एक आनुवांशिक विकार है और सारी दुनिया में शिशुओं की मृत्यु के लिए सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। इस रोग के परिणामस्वरूप मांसपेशियां धीरे-धीरे कमज़ोर होती जाती हैं और आगे चलकर मरीज़ का हिलना-डुलना और गतिविधियां पूरी तरह बंद हो जाती हैं। SMA एक ऐसी बीमारी है, जो गंभीर चुनौतियां पेश करती है। समय से इसका निदान और हस्तक्षेप न किया जाए तो ज़्यादातर मरीज़ दो साल से अधिक जीवित नहीं रह पाते हैं। जिन मामलों में वे जीवित रहते हैं, उनके जीवन की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। आपको बता दें कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉपी से पीड़ित एक बच्चे को जयपुर में मंगलवार को नया जीवन मिल गया है। इस बच्चे को दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन जोलगेनेस्मा लगाया गया है।
टाइप-1 प्रकार सबसे खतरनाक इसमें से टाइप 1 प्रकार को सामान्य रूप से इस रोग का सबसे खतरनाक रूप माना जाता है। इसके सामान्य लक्षणों में शामिल है, श्वसन संबंधी बीमारियां जैसे श्वसनतंत्र से जुड़ी मांसपेशियां में कमज़ोरी और सांस लेने में कठिनाई। निगलने में भी दिक्कतें आ सकती हैं, जिस वजह से भोजन कराना जटिल हो जाता है। टाइप-1 एसएमए से पीड़ित मरीज़ों में विशेष रूप से स्कोलियोसिस यानी रीढ़ का एक ओर का टेढापन पाया जाता है। रीढ़ में आई वक्रता या टेढ़ेपन की वजह से फेफड़ों का विस्तार सीमित हो जाता है, जिससे सांस लेना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। चलना-फिरना कम हो जाने की वजह से जोड़ों में अकड़न या इनके विस्थापित हो जाने जैसी समस्या आती है और हिप्स प्रभावित हो जाते हैं।
तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दुर्लभ रोग संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक गुप्ता ने एसएमए के प्रबंधन के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण के महत्व के बारे में बात की और कहा कि “एसएमए का शिशुओं और उनके देखभाल करने वालों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। एसएमए, विशेष रूप से टाइप 1 का रोगियों और उनके परिवारों पर शारीरिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। श्वसन संबंधी संघर्ष और मांसपेशियों की ताकत से जुड़ी कठिनाइयों के लिए तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है। रोगियों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए डॉक्टरों, चिकित्सकों और सहायता समूहों के बीच व्यापक और सहयोगात्मक देखभाल प्रयास अनिवार्य हैं।
वहीं एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रियांशु माथुर ने कहा कि, “पोषण संबंधी सहायता एसएमए के प्रबंधन का अभिन्न अंग है, जो वृद्धि और विकास को अनुकूलित करने के साधन के साथ रोग की प्रगति को कम करने की रणनीति के रूप में भी काम करता है। एसएमए से पीड़ित बच्चों को दूध पिलाने में कठिनाई, कम वजन बढ़ना और मांसपेशियों की कमजोरी और निगलने में कठिनाई के कारण पोषण की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।