जयपुर। सरहद से जिंदा लौट आए, लेकिन पेंशन की जंग लड़ते—लड़ते जीवन से हार गए। द्वितीय विश्व युद्ध में जख्मी हुए 85 वर्षीय बलवंत सिंह भी पेंशन की समस्या को लेकर 8 साल से सैन्य न्यायाधिकरण (एएफटी) से न्याय का इंतजार कर रहे हैं। वजह पांच साल से सैन्य न्यायाधिकरण (एएफटी) में जज ही नहीं है। सैन्य न्यायाधिकरण बनने के बाद से सैनिक और पूर्व सैनिकों के लिए समस्या यह है कि वे अपनी पीड़ा लेकर हाईकोर्ट भी नहीं जा सकते।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां नहीं होने पर चिंता जताई। इसको लेकर सैन्य न्यायाधिकरण, राजस्थान की बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट एस वी सिंह का कहना है कि वर्तमान में प्रदेश में इस न्यायाधिकरण में करीब 5 हजार पूर्व सैनिक या उनके आश्रितों के मामले लंबित हैं और पांच साल से तो जज (न्यायिक सदस्य व सैन्य सदस्य) के दोनों पद खाली होने से फैसले ही नहीं हो पा रहे। केवल नए मामलों में नोटिस जारी हो रहे हैं। उन्होंने कहा, पांच साल में करीब 15 पूर्व सैनिकों को जीते जी न्याय नहीं दिला पाए, इसका मलाल है। रींगस के पूर्व सैनिक रविकांत ने सेवानिवृति व झुंझुनूं जिले के गडानिया के सुलतान सिंह ने पेंशन की समस्या को लेकर पांच साल पहले केस दायर किया, लेकिन न्याय का इंतजार करते—करते करीब चार साल पहले दम तोड़ दिया।
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