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Rajasthan News: मी लॉर्ड! फैसला तो कर दिया, पालना के लिए कहां जाएं

Rajasthan News: न्याय का इंतजार, देश में 1.39 लाख फैसलों का पालन नहीं, राजस्थान हाईकोर्ट में लंबित हैं अवमानना के 7068 मामले

जयपुरSep 17, 2024 / 01:20 pm

Rakesh Mishra

शैलेन्द्र अग्रवाल
देश में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के एक तिहाई पद खाली होने से पक्षकार पहले से ही सुनवाई समय पर पूरी नहीं होने से परेशान हैं। जैसे-तैसे फैसला हो भी रहा है तो देश में उच्च न्यायालय के फैसलों का पालन नहीं होने की शिकायतों की सूची भी छोटी नहीं है।
इन पीड़ित पक्षकारों की उच्च न्यायालय में दायर याचिका में न्यायाधीशों से एक ही प्रार्थना होती है, मी लॉर्ड आपका फैसला इसकी पालना तो करा दें। देशभर के उच्च न्यायालयों में 1 लाख 39 हजार से अधिक मामले ऐसे हैं, जिनमें न्यायालय से उसके फैसले की पालना कराने की प्रार्थना की गई है। राजस्थान उच्च न्यायालय में विचाराधीन अवमानना के मामलों की संख्या 7068 है।
देशभर में उच्च न्यायालयों में चल रहे अवमानना के 80 फीसदी से अधिक मामले एक साल से अधिक समय से चल रहे हैं। इनमें से 52 फीसदी से अधिक 2011 से 2023 तक के हैं और शेष 2010 या उससे पहले के हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय में अवमानना के 97 फीसदी मामले पिछले 11 साल में आए और इनमें से करीब 27 फीसदी वर्ष 2024 में दर्ज हुए हैं।

अवमानना के मामलों में फैसलों में समय लगता है

देशभर में अवमानना यानि उच्च न्यायालय के फैसले की पालना नहीं होने से संबंधित 21 हजार से अधिक मामलों पर फैसला 2024 में हुआ है, जिनमें से करीब 14 हजार मामले 2023 या उससे पहले उच्च न्यायालयों में आए थे। राजस्थान की स्थिति यह है कि उच्च न्यायालय से उसके आदेश की पालना नहीं होने के 696 मामलों पर 2024 में फैसला आया, जिनमें से 560 से अधिक मामले वर्ष 2023 या उससे पहले उच्च न्यायालय आए थे।

70 फीसदी मामलों में नौकरशाह दोषी

अवमानना के करीब 70 फीसदी से अधिक मामलों में सरकार पक्षकार होती है और नौकरशाह आदेश की पालना नहीं होने के लिए जिम्मेदार होते हैं। अवमानना के ज्यादातर मामले सेवा संबंधी विषयों को लेकर होते हैं, जिनमें नौकरी नहीं देने या सेवा परिलाभ आदि नहीं देने जैसे मामले होते हैं। कुछ मामले वे होते हैं, जिनमें जनहित को लेकर आदेश दिए गए होते हैं। जनहित से जुड़े मामलों में कोई व्यक्ति विशेष प्रभावित नहीं होता, बल्कि एक बड़ा वर्ग प्रभावित होता है। प्राइवेट पक्षकारों से संबंधित अवमानना के मामले बहुत ही कम होते हैं।
अवमानना के मामलों के कारण उच्च न्यायालयों पर अनावश्यक भार बढ़ रहा है। उच्च न्यायालय के आदेश की पालना नहीं होने पर दोषी माफी मांगकर आसानी से राहत पा लेते हैं। पक्षकार को बड़ी मुश्किल से फैसला मिलता है। अवमानना का नोटिस मिलने तक अधिकारी आदेश की पालना ही नहीं करते। उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान के लिए प्रावधान होना चाहिए कि अपील दायर करने की समयसीमा के एक माह में आदेश की पालना नहीं हो तो दोषी को जेल भेजा जाएगा। मैंने राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहते समय अवमानना के एक मामले में न्यायालय के आदेश की पालना के संबंध में दिशानिर्देश दिए हुए हैं।
  • प्रकाश टाटिया, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, झारखण्ड उच्च न्यायालय
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