इतने पिछड़े इलाके से आने के बावजूद आप इस मुकाम पर पहुंचे? क्या चुनौतियां रहीं? पिछड़े और नक्सल प्रभावित होने का सीधा मतलब है कि आप बड़े शहरों से 7 से 8 साल पीछे रहते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। हुनर दिखाने का देर से मौका मिला। जिसके चलते देश के लिए खेलने का मौका पूरा नहीं हो सका। खैर इसका कोई दुख नहीं है। अब मेरा फोकस दूसरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का है।
आप नौकरी में भी हैं, ऐसे में दोनों को कैसे मैनेज करते हैं? क्रिकेट मेरा जुनून है। इसलिए खेल के साथ मैं कोई समझौता नहीं कर सकता। मैं फार्मासिस्ट अधिकारी भी हूं। इसलिए मैंने रास्ता निकालते हुए प्रशासन से नाइट ड्यूटी का निवेदन किया। ऐसे में अब रात के वक्त ड्यूटी करता हूं और सुबह बच्चों को ट्रेनिंग देता हूं।
टीम इंडिया के साथ जुडक़र आप क्या विशेष करने जा रहे हैं?
टीम इंडिया से जुडऩे के बाद जो टीम मैनेजर की प्रमुख जिम्मेदारी होती है वह निभाई जा रही है। बाकी बहुत सी चीजें गोपनीय होती है। जिनकी जानकारी नहीं दी जा सकती। कोशिश कर रहा हूं कि किसी को शिकायत का मौका न दूं। टीम के सदस्यों के साथ भी संबंध काफी मधुर हैं।
सवाल : आपको कैसे पता चला कि आपका चयन इंडिया क्रिकेट टीम में मैनेजर के रूप में हुआ है? जवाब : दिसंबर में ही एक कॉल आया। उसमें कहा गया कि आपकी इंग्लिश कैसी है। मैंने जवाब दिया कि मैं बेहतर इंग्लिश बोल सकता हूं। इसके बाद तुरंत जवाब आया कि आप इंडिया क्रिकेट टीम के मैनेजर चुने जा रहे हैं। हालांकि मुझे वनडे के लिए भी जुडऩा था। लेकिन वीजा में देरी होने से टेस्ट टीम के साथ जुड़ा हूं। अपने रोल मॉडल सुनील गावस्कर से मुलाकात किसी सपने के पूरे होने जैसा था।
क्या पिछड़े इलाके के लोग भी अंतरराष्ट्रीय स्तर में चुने जा सकते हैं, क्योंकि कहा जाता है कि इसके लिए बड़ी-बड़ी अकादमी में ट्रेनिंग जरूरी है? जी बिल्कुल। बल्कि असली टैलेंट तो ग्रामीण इलाकों में है। बस्तर के अंदरूनी इलाकों को मैंने करीब से देखा है। यहां बॉर्न टैलेंट है। यहां के लोग फास्ट बॉलर होते हैं, इसकी इंडियन क्रिकेट टीम में कमी है। आज अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देखें तो एकदम गरीब व पिछड़े तबके के लोगों का न केवल चयन हो रहा है बल्कि वह टीम के प्रमुख प्लेयर भी हैं।