जगदलपुर

विश्व खाद्य दिवस : 1600 दिन से हर दिन जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे खाना

world Food Day : जन्म लेने के बाद पहली शिक्षक मां होती है। उनके द्वारा दी गई शिक्षा ही जिंदगी का आधार बनती है।

जगदलपुरOct 16, 2023 / 11:30 am

Kanakdurga jha

विश्व खाद्य दिवस : 1600 दिन से हर दिन जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे खाना

जगदलपुर। world Food Day : जन्म लेने के बाद पहली शिक्षक मां होती है। उनके द्वारा दी गई शिक्षा ही जिंदगी का आधार बनती है। बस्तर के गीतेश की जिदगी का आाधार भी मां की एक सीख बनी जिसकी वजह से उनकी जिंदगी बदल गई। मां विमल सिंघाड़े ने लोगों की सेवा करने और भूखों को खाना खिलाने की जो नसीहत दी थी वह गीतेश के मन में इस कदर घर कर गई की आज इसी दिशा में अपना जीवन समर्पित कर चुका है। शहर में अब कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोता, क्योंकि गीतेश सिंघाड़े पिछले 1598 दिनों से लगातार ऐसे जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाने का काम करते हैं। पेशे से समाजसेवी पांच साल पहले कोई भूखा न रह जाए इस उद्येश्य से खुद के पैसे लगाकर इस काम को शुरू किया था।
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15 लोग को 35 रोटी खिलाने से शुरू हुआ सफर

15 लोगों को 35 रोटी खिलाने से शुरू हुई यह मुहिम आज 150 से अधिक लोगों को रोजाना दो टाइम का खाना पहुंचाने पर पहुंच गई है। गीतेश अपना पूरा दिन इसी काम में देते हैं। इन पांच सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं आया जिसमें जरूरतमंदों तक खाना उन्होंने न पहुंचाया हो। चाहे बीमार हो या फिर कोरोना का दौर उनकी यह मुहिम निरंतर जारी रही।
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शहर में खाना फेंका जाता न ही कोई सोता है भूखा

अक्सर देखा जाता है कि सामाजिक समारोह से लेकर अन्य शादी पार्टी के कार्यक्रमों में बड़ी मात्रा में खाना बच जाता है। इसका जल्द निपटान नहीं करने पर यह सारा खाना खराब हो जाता है, लेकिन जगदलपुर शहर की बात करें तो आज कोई भी ऐसा समारोह नहीं होता जहां खाना फेंकना पड़े। क्योंकि गीतेश समारोह के खत्म होते ही यहां पहुंच जाते हैं और बचे खाने को जरूरतमंद तक पहुंचा देते हैं। अक्सर इसके लिए उन्हें देर रात 3 बजे तक काम करना पड़ता है।
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उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में

गीतेश सिंघाड़े बताते हैं कि बचे हुए खाने को तो वे जरूरतमंद तक पहुंचा देते हैं, लेकिन इसके समारोह में प्लेट में खाना छोडऩे के चलते भारी मात्रा में भोजन खराब चला जाता है, जबकि इससे कई लोगों की भूख मिट सकती है। इसलिए उन्होंने एक नए अभियान की शुरूआत की है जिसमें वे शादी पार्टी के लोगों से भी कहते हैं कि उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में।
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…और जुट गए काम में

वर्ष 2016 में उन्होंने पहलीबार समाज सेवा के क्षेत्र में काम शुरू किया। नेकी की दीवार के जरिए जरूरतमंदों को कपड़ा बांटते थे। इसी दौरान अंदरूनी इलाके की दो महिलाएं उनके पास आईं और कहा कि भूख लग रहा है कुछ खिला देते तो अच्छा रहता। इन दो बेहद बुजुर्ग महिलाओं में उन्हें अपनी मां नजर आई। उनके पास पैसे नहीं थे। लेकिन सामने के ही एक खाने के दुकान वाले से उनकी अच्छी पहचान थी। उनके आग्रह पर दुकान वाले ने भी खाना दे दिया। इसके बाद उन्होंने ठान लिया कि किसी भी व्यक्ति को वे भूखे नहीं रहने देंगे।

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