काम बस्तर में,गुणवत्ता की जांच दिल्ली में
कागजो में हो रही गुणवत्ता की जांच -50 करोड़ के कार्यो की मॉनिटरिंग के लिए नियुक्त एजेंसी का एक साल बाद भी नही खुला दफ्तर – विभागीय अफसर मौन, ठेकेदार परेशान -हर घर मे स्वच्छ जल पहुंचाने की महत्वकांक्षी परियोजना हाशिए पर
-हर घर मे स्वच्छ जल पहुंचाने की महत्वकांक्षी परियोजना हाशिए पर
मनीष गुप्ता . जगदलपुर. केंद्र की विकास योजनाओं में टीपीआई ( थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन) को लेकर बड़े खेल होने लगे है केंद्रीय विभागों द्वारा नियुक्त एजेंसियां न तो अनुबंध का पालन करती है और न ही मानकों के मुताबिक तकनीकी कर्मियों की नियुक्ति ही करती है उल्टा विभाग मुख्यालयों में बैठकर मेल य कुरियर से एम बी मंगाकर बिना गुणवत्ता की जांच किए उसमें हस्ताक्षर कर शासन को लाखों का चूना लगा रहे है । इसकी बानगी जल जीवन मिशन में देखने को मिल रही है जहां बस्तर के लिए नियुक्त टीपीआई एजेंसी बिना दफ्तर एवं तकनीकी कर्मियों के नोएडा में बैठे बैठे करोड़ो के कार्यो की कागजो में ही जांच कर उसका भुगतान भी करवा दिया है इस सम्बंध में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अफसरों ने भी मौन साध रखा है
50 करोड़ के कार्यो का कार्यादेश….
बस्तर में जल जीवन मिशन के तहत टीपीआई एजेंसी रुद्राभिषेक इंटर प्राईजेस नोएडा को 50 करोड़ के कार्यो का कार्य आदेश मिला है इसके तहत कम्पनी को बस्तर में अपना कैम्प ऑफिस खोलकर एक टीम लीडर जो कि अधीक्षण यंत्री के समकक्ष हो, 2 सीनियर क्वालिटी कंट्रोलर,तथा फील्ड क्वालिटी कंट्रोलर के रूप में 9 सिविल इंजीनियर नियुक्त करने थे लेकिन कार्य प्रारम्भ करने के एक वर्ष के बाद भी न तो दफ्तर खुला और न ही कर्मचारी नियुक्त हुए। कुछ दिनों तक दो स्थानीय इंजीनियरो के सहारे काम चल रहा था आज एक भी क्वालिटी कंट्रोलर इनके पास नही है बताया जाता है कि नोएडा में बैठे कम्पनी के अधिकारी कागजो में क्वलिटी कंट्रोल करने में लगे हुए है। एक ठेकेदार की माने तो टीपीआई एजेंसी के अधिकारी यहाँ है ही नही वे दिल्ली में बैठकर ही उनकी माप पुस्तिका मेल से मंगाकर उसमें हस्ताक्षर करते है इससे उनके काम मे अनावश्यक विलम्ब होता है इससे काम की लागत भी बढ़ती है ।
सरकार और ठेकेदार दोनो को लगा रहा है चूना….
विभाग के एक अफसर की मानें तो टीपीआई एजेंसी क्वालिटी कंट्रोल के लिए 1%में काम लिया है इसके लिए विभाग कार्य के मूल्यांकन के साथ इसका भुगतान करता है लेकिन एजेंसी के क्वालिटी कंट्रोलर यहाँ नही होने के कारण टीपीआई एजेंसी के बिना भुगतान सम्भव नही है यही कारण है कि कई ठेकेदारों को अपने बिल व एमबी लेकर दिल्ली की यात्रा भी करनी पड़ती है साथ ही उन्हें एजेंसी की मांग पर अतिरिक्त शुल्क भी देना पड़ रहा है इससे टीपीआई एजेंसी दोहरा लाभ अर्जित कर रही है जल जीवन मिशन के तहत बस्तर जिले के जगदलपुर,बास्तानार और दरभा जिलो में हुए कार्यो की गुणवत्ता काफी खराब बताई जा रही है इस बारे में पीएचई के अफसर कुछ बोलने को ही तैयार नही है
अन्य योजनाओं का भी यही हाल ……
केंद्र सरकार की आधादर्जन अन्य विकास योजनाओं में भी थर्ड पार्टी वेल्युएशन की व्यवस्था की गई है इसका मूल उद्देश्य क्वलिटी कंट्रोल के साथ साथ वित्तीय नियंत्रण भी स्थापित हो, यह व्यवस्था कुछ विभागों में तो कारगर साबित हुई है लेकिन कुछ में यह खाओ कमाओ स्कीम बनकर रह गई है जिन एजेंसियों को क्वलिटी कंट्रोल का काम मिलता है उनमें से अधिकांश एजेंसियां सिर्फ कागजो में टेंडर की शर्तों को पूरा करती है जबकि मैन पावर के लिए स्थानीय लोगो पर आश्रित रहते है केंद्र की अन्य योजनाए जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजनाओ में भी इसी प्रकार की स्थितियां दिखाई देती है हालांकि पीएमजीएसवाय के शुरुआती दौर के बाद से इसमें काफी सुधार भी हुआ है लेकिन पूर्व में कई गई मनमानी के निशान आज भी दक्षिण बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में दिखाई दे रहे हैं ।
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