यह सभी युवा बस्तर के आदिवासी युवाओं का जीवन बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं। अनुभव शोरी, सौरभ मोतीवाला, मंजूला मंडावी और नानीराम बाकड़े ने अपने काम से बस्तर में अलग पहचान बनाई है। अनुभव सोरी पर्यटन ग्राम का मॉडल बनाकर आदिवासी युवाओं की आजीविका बढ़ा रहे हैं। सौरभ मोतीवाला देश भर में सोलर व विंड पॉवर के सस्ते व एडवांस तकनीक को लांच कर व अपना भी रहे हें। नानीराम बाकड़े खेती किसानी में हाथ आजमा रहे हैँ। इसके अलावा मंजूला खेती के माध्यम से आत्मनिर्भर हैं।
National Youth Day 2025: जल-जंगल और जमीन के बीच रोजगार का मॉडल बना रहे अनुभव
अनुभव शोरी देश की प्रसिद्ध शोध संस्था एटीआरईई बैंगलोर के सदस्य हैं। अनुभव बताते हैं कि मूल रूप से कांकेर जिले के रहने वाले हैं और बस्तर जिले में पिछले छह साल से काम कर रहे हैं। वे पर्यावरण संरक्षण और जंगलों से आजीविका विकास के विकल्पों की खोज का काम कर रहे हैं। इसे सरल तरीके से समझें तो वे जल-जंगल और जमीन के बीच रोजगार का मॉडल तैयार कर रहे हैं। ऐसा मॉडल जिसमें जल-जंगल और जमीन प्रभावित ना हों और ग्रामीणों को रोजगार के अवसर मिलें। अनुभव ने ही बस्तर जिले में धुड़मारास और तिरिया का मॉडल बनाया। इस सफल मॉडल की वजह से आज इन दोनों गांवों के युवा महीने में लाखों की आमदनी कर रहे हैं। अनुभव ने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग और ग्रामीण विकास में एमबीए की पढ़ाई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट जयपुर से की है। इसके बावजूद उन्होंने बस्तर में रहते हुए बस्तर को बदलने का काम कर रहे हैं।
वे बस्तर संभाग में वन अधिकार कानून, विशेषकर सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को ग्राम सभाओं तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों से अब तक 200 से अधिक ग्राम सभाओं को अधिकार प्राप्त हुए हैं। अनुभव ने धुड़मारास, तिरिया के अलावा गुमलवाड़ा, और नागलसर जैसे गांवों में ग्रामीणों को जंगलों से आजीविका और उनके प्रबंधन में मदद प्रदान की है। वे ग्रामीणों को अपने गांव में उपलब्ध संसाधनों से ही रोजगार के अवसर तैयार करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। अनुभव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में कई कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं।
नानीराम ने खेती को मुनाफे में तब्दील कर इससे औरों को भी जोड़ा
दरभा के ही ढोढरेपाल में रहने वाले 30 वर्षीय नानीराम बाकड़े अपने गांव में किसी प्रेरणा से कम नहीं है। वह बताते हैं कि सीमित संसाधनों के बीच वह बीएससी तक पढ़ाई पूरी की है। उन पर अपने दिव्यांग पिता के साथ रहकर उनकी सेवा करने की जिमदारी भी थी। ऐसे में वह अपने गांव में ही निजी जमीन पर परंपरागत खेती को छोड़कर प्रदान के साथ मिलकर उन्नत कृषि के क्षेत्र में कार्य करने की शुरूआत की। आज वह पिछले छह साल से खेती के अलावा आजीविका के लिए दलहन, तिलहन, मंडिया, उड़द, अरहर जैसे अनाजों की उपज कर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। नानी राम अपनी उन्नत कृषि के दम पर हर महीने हजारों कमा रहे हैँ। उनको उन्नत कृषि में आत्मनिर्भर होते देख गांव के अन्य युवाओं और किसानों ने उनसे कृषि के क्षेत्र में किए गए प्रयोग की जानकारी चाही जिसके बाद वह प्रदान संस्था के मदद से गांव के युवाओं की मदद कर रहे हैँ और वर्तमान में गांव के 40 परिवार उनकी तरह उन्नत कृषि को अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
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अपने स्वयं की खेती बाड़ी से समय निकालकर नानीराम अपने आसपास के गांवों के लगभग 100 महिला समूह को उन्नत कृषि अपनाकर अजीविका के साधन को अपनाने की सलाह देते हुए महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की दिशा में काम कर रहे हैं। उनके द्वारा बताए उपायों के जरिए कम पानी में पकने वाले फसल के अलावा महिलाएं सब्जियों की खेती कर रहे हैं।वर्ल्ड बैंक के ऊर्जा सलाहकार सौरभ ग्रीन एनर्जी को अपनाने दे रहे जोर
शहर के सौरभ मोतीवाला अक्षय ऊर्जा विषय से उच्च शिक्षित हैं। वे इस पर शोध भी कर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक के ऊर्जा सलाहकार होने के बाद भी इन्होंने अपने गृह जिले बस्तर में ही काम करने की ठानी। वे बीते कुछ साल से आदिवासी जन के बीच लाइवलीहुड, हाइजिन, एजुकेशन व ग्रीन एनर्जी अपनाने की न सिर्फ सीख दे रहे है। बल्कि खुद ही इसी तर्ज में जीवन यापन कर रहे हैं। इंजीनियरिंग में एमटेक करने के बाद वे आईआईटी मुंबई में रिनोवेबल एनर्जी रिसोर्स जैसे सौर व वायु ऊर्जा के बेहतर उपाय व इसमें उपयोग में आने वाले उपकरण के दुष्प्रभाव पर शोध कर रहे हैं। बीते सप्ताह हिमाचल प्रदेश के मंडी में हुए एक अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में इनके शोधपत्र को प्रथम स्थान हासिल हुआ है। पत्रिका से चर्चा में सौरभ ने बताया कि तीन पीढिय़ों से उनका परिवार बस्तर में रह रहा है। मैँ उच्च शिक्षा के लिए महानगरों तक गया।
युवाओं में इन दिनों कैरियर बनाने विदेश जाने का ट्रैंड छोड़कर मैंने अपना मुकाम यहीं चुना। यहां काम करने की अपार संभावनाएं हैं। मैं अपने अन्य साथियों के साथ यहां वनवासियों से वनोपज संग्रहण, उसके वैल्यू एडिशन, शिक्षा व प्रदूषण रहित जीवन को सीख व सीखा रहे हैं। आने वाले समय में बस्तर इन्हीं संसाधनों के बूते अपनी नई पहचान बनाएगा। सौरभ ने बताया कि बीते साल ही उनका विवाह हुआ विवाह में रियूजेबल सामान का उपयोग किया गया। बचे हुए आहार को खाद में बदला गया। कोई भी कचरा उत्पाद न हो इसका ध्यान रखा गया। इस विवाह को छत्तीसगढ़ में पहली ग्रीन वेडिंग का प्रमाणपत्र हासिल हुआ।
मंजूला ने नौकरी नहीं की बल्कि अपने काम से औरों को आत्मनिर्भर बना रहीं
National Youth Day 2025: दरभा ब्लॉक के छिंदबहार में रहने वाली मंजुला मंडावी बीए ग्रेजुएट हैं। पढ़ाई के बाद उन्होंने नौकरी करने के बजाय अपने आसपास के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी और उन्नत कृषि को अपनाया। अपनी छोटी से जमीन पर सब्जी-भाजी लगाकर घर बैठे ही अजीविका का साधन अपनाया। कम समय में ही आधा एकड़ जमीन में सब्जियां उगाकर अच्छा मुनाफा कमाने लगीं। मंजुला बताती हैं कि वह आत्मनिर्भर होने के बाद अपने आसपास के महिलाओं को भी सशक्त बनाने के लिए प्रदान संस्था के मदद से कृषि सखी और सक्रिय महिला समूह बनाकर उन्हें उन्नत कृषि के लिए प्रेरित कर रही हैं। आज वह अपने गांव छिंदबहार के साथ आसपास के चिंगपाल, मावलीपदर, टोपर, लेण्ड्रा सहित दर्जनों गांवों में 300 महिला समूह की महिलाओं को आत्मनिर्भर होने का पाठ पढ़ा रही हैं।