रथयात्रा की पौराणिक परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ अनसर काल के बाद माता लक्ष्मी से (देशाटन भिन्न भिन्न देशों की यात्रा) की बात कह कर मंदिर से निकलते हैं, लेकिन वे कहां ठहरे हैं, इसकी जानकारी वे देवी लक्ष्मी को नहीं देते हैं। पांच दिन बाद भी भगवान जगन्नाथ के घर नहीं लौटने पर माता लक्ष्मी उन्हें खोजने के लिए मंदिर से निकलती हैं। इस रस्म को ही हेरा पंचमी कहते हैं।
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हेरापंचमी की शाम माता लक्ष्मी पालकी में सवार होकर राजा के महल पहुंचीं। यहां उनका पारंपरिक तौर पर स्वागत सत्कार हुआ पर भगवान वहां नहीं मिले, इसलिए वह राजगुरु के घर भी गईं। वहां भी भगवान से उनकी मुलाकात नहीं हुई। अंत में वह जनकपुर पहुंचीं और देखा कि भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ मौसी के घर पकवान उड़ा रहे हैं। इस बात से नाराज माता का भगवान के साथ संवाद हुआ कि वे अपनी पत्नि को मौसी के घर क्यों नहीं लाए। गोंचा की इस महत्वपूर्ण रस्म के दौरान परंपरा निभाने 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के लोग दो हिस्सों में बंटे हुए थे।
एक पक्ष माता लक्ष्मी की तरफ से भगवान से लगातार प्रश्न कर रहा था, वहीं दूसरा पक्ष भगवान की ओर से शांतिपूर्वक जवाब दे रहा था, लेकिन भगवान के उत्तर से माता लक्ष्मी संतुष्ट नहीं हुईं और उनके रथ को ठोकर मार कर मंदिर लौट आईं। हेरा पंचमी पर बड़ी संख्या में भक्त डोली में सवार माता के साथ भगवान को खोजने निकले थे।