देशी तकनीक से गुलेल-धनुष का इजाद
हुनरमंद: देशी हथियार से सटीक निशाना साधने में मिलेगी मदद.. लकड़ी को बंदूक का स्वरूप देंकर बनाया गया पारम्परिक हथियार.. एक ही हथियार गुलेल एवं धनुष का करेगा काम
लकड़ी को बंदूक का स्वरूप देंकर बनाया गया पारम्परिक हथियार
नारायणपुर। अबुझमाड़ की बदलती परिस्थिति के कारण आदिवासी ग्रामीणों को पारम्परिक हथियार से जंगल मे शिकार करना अघोषित रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इससे अबुझमाड़ के आदिवासी ग्रामीणो को जंगल मे शिकार करते समय हथियार के अभाव में कई तरह की परेशानियों का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस समस्या को संज्ञान में लेकर अबुझमाड़ के ग्रामीण न3 देशी तकनीक के सहारे पारम्परिक हथियार का इजात किया गया है। इस एक हथियार के सहारे आदिवासी ग्रामीण 2 तरह से निशान साध पाएंगे। इसमें देशी तरीके से लकड़ी को भरमार बंदूक का स्वरूप दिया गया है। इसमें लकड़ी से बनाए गए भरमार बंदूक के स्ट्रीगर से जानवर पर तीर से वार किया जा सकता है। इसके साथ ही इसी बंदूक के स्ट्रीगर से गुलेल की गोटी से भी जानवर को निशाना बनाने में सक्षम है। इस तरह देशी तकनीक से बनाया गया लकड़ी का भरमार बंदूक जानवरों को सटीक निशाना साधने के लिए कारगर रूप से नजर आ रहा है। इस तरह अबुझमाड़ के ग्रामीणो ने देशी जुगाड़ से जानवरो के शिकार के लिए आधुनिक हथियार का इजात किया है। इस देशी आधुनिक हथियार की इन दिनों अबुझमाड़ में काफी प्रशंसा हो रही है। जानकारी के अनुसार अबुझमाड़ अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं सौंदयता को लेकर देश- विदेश में चर्चित है। इससे अबुझमाड़ में निवासरत आदिवासी आज भी अपनी संस्कृति, सभ्यता, रीति-रिवाज एव परम्पराओं का निर्वहन करते आ रहे है। इससे अबुझमाड़ की परंपराओं में जंगल में जाकर शिकार करना शामिल है। इससे अबुझमाड़ के ग्रामीण जंगली जानवरों का शिकार करते समय अपने पारम्परिक हथियार का इस्तेमाल करते है। इसमें भरमार बंदूक, गुलेल, टंगिया, तीर-धनुष्य शामिल है। इन्ही पारम्परिक हथियारों के सहारे अबुझमाड़ के आदिवासी ग्रामीण जंगली जानवरों का शिकार कर
अपने त्यौहार मनाते है। लेकिन बदलती परिस्थितियों के कारण अबुझमाड़ में पारम्परिक हथियार का उपयोग करना आदिवासी ग्रामीणों के लिए जोखिम भरा साबित होते जा रहा है। इससे अबुझमाड़ में जंगली जानवरों के शिकार करने के लिए उपयोग में आने वाले पारम्परिक हथियार भरमार बंदूक पर अघोषित रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे अबुझमाड़ के ग्रामीण जंगल में जानवरो का शिकार करने के लिए धनुष्य एवं गुलेल का खास कर उपयोग करते है। लेकिन इन पारम्परिक हथियारों से जानवरो का सटीक निशाना साधने के लिए मदद नहीं मिल पाती है। इससे अबुझमाड़ के आदिवासी ग्रामीणों को शिकार किए बिना ही कई बार जंगल से बैरंग लौटने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे भरमार बंदूक के इस्तेमाल पर रोक एवं जानवरों पर सटीक निशाना साधने के लिए अबुझमाड़ के ग्रामीणों ने देशी तकनीक के सहारे पारम्परिक हथियार को नया स्वरूप दिया है। इसमें लकड़ी में देशी रूप से कारगिरी करते हुए भरमार जैसे हूबहू लकड़ी की बंदूक बनाई है। इस लकड़ीनुमा बंदूक से गुलेल की गोटी के साथ ही तीर से जानवर पर सटीक निशाना साधा जा सकता है। इस बंदूक में बनाए गए देशी स्ट्रीगर के दबाते ही गुलेल की गोटी या फिर तीर जानवर को मार गिराने में सक्षम है। इसके साथ ही इस लकड़ीनुमा बंदूक से जानवरो पर आसानी से निशाना साधा जा सकता है। इससे अबुझमाड़ के ग्रामीणों द्वारा देशी तकनीक से बनाए गए लकड़ीनुमा भरमार बंदूक से जंगल शिकार करना आसान हो जाएगा। इससे अबुझमाड़ में देशी तकनीक से बनाए गए इस आधुनिक हथियार की इन दिनों भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही है। इस बंदूक को देखकर हर कोई इससे एक बार इससे निशाना साधने का प्रयास करने में पीछे नही हटता है।
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