दो दर्जन से अधिक परिवार इलाज के लिए भटके
बस्तर में पिछले कुछ महीनों की तरफ नजर डालें तो दो दर्जन से अधिक ऐसे मामले सामने आए जो एमरजेंसी मामले इलाज के लिए बाहर तो जरूर गए लेकिन वहां आयुष्मान से इलाज नहीं होने की बात पर यहां वहां भटकते रहे। कुछ ने हिम्मत की और कर्ज लेकर इलाज कराया। लेकिन महंगे इलाज के चलते अंत में या तो मरीज की क्रिटिकल स्थिति को देखने के बाद भी वापस लाना पड़ा और उनकी मौत हो गई या फिर दूसरे जगह शिफ्ट करते करते अपनों को खो दिया। ऐसे लोगों की संख्या एक या दो नहीं बल्कि दो दर्जन से अधिक लोग ऐसे है। केस – 1. आयुष्मान की उम्मीद में गए थे, नहीं चला कार्ड, आधे इलाज में वापस लाना पड़ा
विमल (परिवर्तित नाम) बताते हैं कि उनके पिता को बे्रन में अचानक स्ट्रेाक मारा। उन्हें महारानी अस्पताल ले जाया गया। यहां विशेषज्ञ न होन की स्थिति में बाहर ले जाने की सलाह दी गई। पिता के बेहतर इलाज के लिए राजधानी में रामकृष्ण अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यहां एडमिट होने के बाद पता चला कि आयुष्मान कार्ड से इलाज नहीं हो पाएगा। हर दिन 60 हजार रुपए बेड चार्ज था। इसके अलावा सर्जरी व अन्य खर्चे अलग से। इस तरह मात्र तीन दिन के अंदर ही 5 लाख तक का बिल बन गया। सामान्य परिवार होन की वजह से आगे खर्च वहन कर पाना मुश्किल था ऐसे में वापस लाने की सोची। वापसी के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
केस – 2. बाद में बताया आयुष्मान नहीं चलेगा, इसलिए वापस लेकर आना पड़ा
अंकित(परिवर्तित नाम) बताते हैं कि दो महीने पहले जब एक हादसे में भाई को चोट आई तो उसे हेड इंज्यूरी की वजह से रायपुर ले जाया गया। बेहतर इलाज की आस में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन भर्ती करने के बाद बताया गया सरकार से आयुष्मान का पैसा नहीं मिल रहा है इसलिए कार्ड नहीं चलेगा। इलाज करवाना है तो पैसे देने होंगे। ऐसे में परिवार वालों ने शुरूआती दिनों का इलाज तो करवाया लेकिन खर्च का बोझ बढ़ता देख वापस लौटने का फैसला लिया। स्थिति गंभीर थी ऐसे में मजबूरी में उन्हें सरकारी अस्पताल ले जाना चाहा। लेकिन इसी दौरान ही उनकी मौत हो गई।
केस – 3. हर महीने 1500 से अधिक लोग जाते हैं इलाज के लिए बाहर
बस्तर में स्वास्थ्य सेवाओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां से मिडिल क्लास का व्यक्ति भी सामान्य इलाज के लिए विशाखापटनम, रायपुर या फिर हैदराबाद ही जाता है। यहां मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद भी अधिकतर विभाग के विशेषज्ञों की कुर्सी खाली ही है। यहां विशेषज्ञों की भारी कमी है। यही वजह है कि बस्तर का एकमात्र मेडिकल कॉलेज और जिला अस्तपाल सिर्फ रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं।