वहीं भोजनालय संचालकों की मानें तो थाली की दर में मामूली बढत से उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा है और वह पुराने तथा बंधे हुए ग्राहकों को अभी भी कम दर में भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। हालांकि बाजार में लगी आग उनके कारोबार का प्रभावित कर रह है। व्यापारियों का कहना है कि कई बार इस कारण नियमित ग्राहक नाराज भी हो जाते हैं। वहीं होटलों में पहुंचने वाले लोगों का कहना है कि दाम अधिक देने के बाद भी उन्हें गुणवत्तायुक्त भोजन नहीं मिल रहा।
गुणवत्ता पर भी नजर आ रहा असर
शहर के कई भोजनालयों में थाली से लेकर आर्डर के भोजन महंगा हुआ है। इसके दरों में बढ़ोतरी होने के बावजूद दाल, रोटी और सब्जी की क्वालिटी पर असर दिखाई दे रहा है। थाली के दाल में पानी बढ़ा तो सब्जी से स्वाद गायब हो रहे हैं। वहीं चपाती की क्वालिटी भी गिरी है। कहीं कहीं पर तो खाने के स्वाद ही बदल गये हैं। इसके बावजूद पेट भरना जरूरी है और आम जनता महंगाई के बीच भोजनालय तक पहुंच रहे हैं।
खाद्य सामग्री के दाम बढ़े
दशकों से भोजनालय का संचालन कर रहे ओमप्रकाश जोशी का कहना है कि दिनों दिन बढ़ रहे खाद्य सामग्री के दामों में बढ़ोतरी से भोजन का थाली का रेट बढ़ाना मजबूरी है। खाने के तेल से लेकर दाल, आटा व चावल सहित अन्य सामग्रियों के दाम में वृद्धि हुई है। खाने के वस्तुओं में तेजी से थाली सिस्टम में खाना परोसना बहुत मुश्किल हो रहा है। ऐसे में थाली के दामों में मामूली बढ़त किया गया है। शहर में अब भोजनालयों में कहीं भी खाने की थाली 100 रूपए से कम की नहीं है। आज से चार महीने पहले जो थाली 70 और 80 में भरपेट खाना मिलता था वह अब 100 रूपए में मिल रहा है वहीं 100 की थाली 120 रूपए हो गई है। इन थालियों में भी सब्जी और दाल फिक्स है। शहर के भीतर राजस्थानी और गुजराती थाली के अलावा बस स्टैण्ड के आसपास नानवेज की थाली भी उपलब्ध है।